लेखक: मह़मूद रज़ा क़ादरी, गोरखपुर एक जगह एक प्रोग्राम में मेरा जाना हुआ तो देखा कि एक खातून बड़ी मायूस थी मुसलसल आंखें आंसुओं से तर थी जब प्रोग्राम से फारिग हुए तो मुसाफा के वक्त फूट-फूटकर रोने लगी मैंने तसल्ली देते हुए उन्हें बोलने की हिम्मत दिलाई और पूछा कि मसला क्या है?? रोने […]
लेख
हिसाब
सिद्दीक़ी मुहममद ऊवैस सोचा आज..हिसाब कर दूँ…बीते वक़्त का हिसाब…पिछली यादों का…लम्हों का…बीती बातों का हिसाब…अब तक की…ज़िंदगी का हिसाब…बरसों पहले…साथ छोड़ने वाले…बचपन का हिसाब…फ़िर हर एक पल को…सिरे से याद किया हमने…अब तक क्या पाया…क्या खोया… क्या कमाया…कितना लूटाया…लेकिन मुश्किल था ये सब…बहुत ज़ोर दिया अक़्ल पर…दिमाग खपाया… बावजूद इसके….कुछ याद ना आया…बढ़ती उम्र… […]
