इसलाम में आत्महत्या करना बिल्कुल मना है और इसे बहुत बड़ा गुनाह (पाप) बताया गया है।
फ़रमाया क़ुरान में:
हे ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ, परन्तु ये कि लेन-देन तुम्हारी आपस की स्वीकृति से (धर्म विधानुसार) हो और आत्म हत्या न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।
(क़ुरान 4:29)
अल्लाह ने ना केवल आत्महत्या को वर्जित किया बल्कि इस दौरान या इन परिस्थितियों से गुज़र रहे मनुष्य का बोहत ही उचित मार्गदर्शन भी किया है। जिस से आत्महत्या करना बिल्कुल निरर्थक साबित हो जाता है और मनुष्य को इन परिस्थितियों का सामना करने की दृढ़ता मिलती है।
अकसर व्यक्ति आत्महत्या इन कारणों से करता है :-
- जीवन का उद्देश्य खत्म हो जाना /जीने की इच्छा खत्म हो जाना ।
अधिकांश आत्महत्या इसी वजह से होती हैं कि मनुष्य इस दुनिया को ही सब कुछ समझ लेता है और किसी समय उसे ऐसा लगने लगता है कि अब जीने का कोई मतलब ही नही रहा है। कुछ को ऐसा दुनिया मे कुछ प्राप्त ना होने पर लगता है तो कुछ को बोहत कुछ प्राप्त हो जाने पर लगने लगता है जो प्रायः अमीरों और सफल व्यक्तियों की आत्महत्या का कारण होता है।
इस पर क़ुरान और इसलामी अक़ीदे (क़ुरान 67:2) का सीधा मार्गदर्शन है जिसमे स्पष्ट बता दिया गया है कि यह जीवन तो आख़िरत का सिर्फ एक इम्तेहान (परीक्षा) भर है।
और असल जीवन तो मृत्यु के बाद का ही है।
और (ये) दुनियावी ज़िन्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं और ये तो ज़ाहिर है कि आख़िरत का घर (बेहिश्त) परहेज़गारो के लिए उसके बदर वहॉ (कई गुना) बेहतर है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते
(कुरान 6:32)
मतलब यह जीवन तो थोड़े समय की परिस्थिति है ,कोई फर्क नही पड़ता आप अमीर हैं या ग़रीब आपने जीवन मे क्या पाया और किस से वंचित रह गए। असल जीवन तो आख़िरत का ही है और हमेशा रहने वाला है। अगर यह उद्देश्य मनुष्य के सामने हो तो आत्महत्या करना बिक्कुल निरर्थक हो जाता है ।
- समस्याओं में टूट जाना ,अवसाद, दुःख, निराशा, कोई उम्मीद बाकी नही रहना-
यह भी आत्महत्या का प्रमुख कारण होता है। ऊपर कही बातें तो इसमें भी मार्गदर्शन करती हैं । परंतु इसके अलावा भी क़ुरान इंसान को आशावान रहने और सब्र करने को कहता है।
….जो ईमान रखता हो अल्लाह तथा अन्त-दिवस (प्रलय) पर और जो कोई डरता हो अल्लाह से, तो वह बना देगा उसके लिए कोई निकलने का उपाय।
और उसे जीविका प्रदान करेगा, उस स्थान से, जिसका उसे अनुमान (भी) न हो तथा जो अल्लाह पर निर्भर रहेगा, तो वही उसे पर्याप्त है।..
(क़ुरान 65:2-3)
कितने ही प्रिय और दृढ़ वचन हैं यह जिन पर विश्वास करने वाला कभी निराश नहीं हो सकता।
- आत्मग्लानि आदि –
कई बार इंसान पूर्व में किये कामो पर आत्मग्लानि में ही अपनि जान दे देता है । इस के बारे में भी फ़रमाया के आत्महत्या करने (जिस से कोई लाभ नही) कि बजाय वह व्यक्ति अल्लाह से माफी मांगे और अपने किए को सही करे या किसी और तरीके से पश्चयातप करे।
उसके सिवा, जिसने क्षमा याचना कर ली और ईमान लाया तथा कर्म किया अच्छा कर्म, तो वही हैं, बदल देगा अल्लाह, जिनके पापों को पुण्य से तथा अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
(क़ुरान 25:70)
लेकिन इन सब के बाद भी जो व्यक्ति कायरता का परिचय देते हैं, अपने ईश्वर पर विश्वास और भरोसा नही करते हैं, उसके आदेश की अवहेलना करते हुए अपने परिवार वालों के जीवन मे दहाड़ ,दुःख उत्पन्न करते हैं । और अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते हुए आत्महत्या करते हैं। वे फिर अल्लाह तआला की सख्त नाराज़ी के भागी बन कर उसकी सज़ा के भागी बनते हैं जैसा फ़रमाया अगली आयात (आत्महत्या को वर्जित करती) में
और जो शख्स जोरो ज़ुल्म से नाहक़ ऐसा करेगा (ख़ुदकुशी करेगा) तो (याद रहे कि) हम बहुत जल्द उसको जहन्नुम की आग में झोंक देंगे यह ख़ुदा के लिये आसान है
(क़ुरान 4:30)
साथ ही हदीस में मोहम्मद (स.अ.स) (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आत्महत्या करने वालो को सख्त अंजाम से आगह किया है। देखें :
(सही बुखारीः 5442 व मुस्लिमः 109)।
अतः मालूम हुआ इसलाम आत्महत्या करने से मना फरमाता है, उसके बाद खुद को और दुसरो को तकलीफ में डाल कर यह यह कृत्य करने वालो को कठोर सज़ा के लिए सचेत भी करता है।