कविता लेख

हिसाब

सिद्दीक़ी मुहममद ऊवैस

सोचा आज..
हिसाब कर दूँ…
बीते वक़्त का हिसाब…
पिछली यादों का…
लम्हों का…
बीती बातों का हिसाब…
अब तक की…
ज़िंदगी का हिसाब…
बरसों पहले…
साथ छोड़ने वाले…
बचपन का हिसाब…
फ़िर हर एक पल को…
सिरे से याद किया हमने…
अब तक क्या पाया…
क्या खोया… क्या कमाया…
कितना लूटाया…
लेकिन मुश्किल था ये सब…
बहुत ज़ोर दिया अक़्ल पर…
दिमाग खपाया… बावजूद इसके….
कुछ याद ना आया…
बढ़ती उम्र… गुज़रते दिन..
हवा सी तेज़ ज़िंदगी…
बस इन्हें साथ पाया…!!!!

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