कविता

नग़मा-ए-दीवाली

सारे जग पर वही छा गई रौशनीराम के शह्र से जो उठी रौशनी क्यूँ न दीवाली ये छाए माहौल परझूट पर सच की है फ़तहा की रौशनी उन की किस किस सिफ़त का बयाँ मैं करूँराम के हर अमल से उगी रौशनी हर तरफ़ रात में था अँधेरा बहुतजगमगाए दिये तो हुई रौशनी क्या अजब […]

कविता

कविता: रौशनी बन के छाई दीवाली

रौशनी बन के छाई दीवालीमेरे घर मुस्कुराई दीवाली आओ इस को दिलों में भर लें हमजो उजाला है लाई दीवाली हिज्र में यादों के दिये रख करअब के मैं ने जगाई दीवाली ज़ुल्म की तीरगी से गुज़रे हैंतब कहीं हम ने पाई दीवाली कट गया मरहबा मेरा बनबासआज मैं ने मनाई दीवाली पैरहन उस का […]

कविता

ग़ज़ल: नहीं हूँ मैं अब गम उठाने के काबिल

गुनाहों से खुद को बचाने के काबिलखुदाया बना सर झुकाने के काबिल मेरी मुफ्लिसि मेरे पीछे पड़ी हैबना इससे पीछा छुड़ाने के काबिल इलाही ये अब तो मेरी तंगदस्तिबची ही नहीं आजमाने के काबिल कोई दाग़ आये ना दामन पे मेरेहमेशा रहूँ सर उठाने के काबिल तेरी रहमतों का सहारा है वरनाकहाँ हूँ मैं इतना […]

कविता

ग़ज़ल: उम्र भर धूप की बारिश में नहाया होगा

उम्र भर धूप की बारिश में नहाया होगातब कहीं जा के कोई फूल खिलाया होगा आज क्या खूब हुई रिज़क में मेरे बरकतआज महमान कोई घर मेरे आया होगा सच बता जिनसे तू करता था वफा की उम्मीदवक़्त पड़ने पे कोई काम ना आया होगा नाज़ बच्चों के उठाते हुए महसूस कियाकिस तरह बाप ने […]

कविता

ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँ

ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँतुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार करता हूँ मुझे पता है दगा है तुम्हारी फितरत मेंमगर मैं फ़िर भी तेरा अयतेबार करता हूँ तेरे नसीब की खुशियाँ तुझे मुबारक होमैं रोज़ गम के समंदर को पार करता हूँ इसी सबब से तेरा ज़रफ देखने के लिएकभी कभी […]

कविता

ग़ज़ल: बिक गया वो शख्स आखिर कौड़ियों के दाम पर

रात की तारीकियों में रौशनी के नाम परएक दीया मैंने जला कर रख दिया है बाम पर मेरे अपनों ने मुझे कुछ इस तरह रुस्वा कियामेरा दामन चाक कर डाला रफू के नाम पर एक दूजे से लिपट कर रो रहे थे वालिदैनलाडले परदेश को जब भी गए थे काम पर क्या बताऊँ आपको मैं […]

कविता

उठो कवीराज अब आंखें खोलो

उठो कवीराज अब आंखें खोलो,,शिमला की मस्जिद, वक्फ बोर्ड बिल पर कुछ तो बोलो… खोली थी जो तुम्हारे आका ने जो मुहब्बत की दुकान,,देखो हिमाचल में बिक रहा उसमें नफरत का सामान… तुम तो चले थे भारत जोड़ने,,देखो तुम्हारे लोग लगे हैं शिमला में मस्जिद तोड़ने… कहां गये तुम्हारे आका, कोई कुछ क्यों नहीं बोलता,,हिमाचल, […]

कविता

ग़ज़ल: जो समुंदरों के रफ़ीक़ थे उन्हें तिश्नगी ने हरा दिया

कभी इल्म ने उसे मात दी कभी आगही ने हरा दियाजिसे तीरगी न हरा सकी उसे रौशनी ने हरा दिया कभी ख़ुश्क उन के न लब हुए रही जिन की क़तरों से दोस्तीजो समुंदरों के रफ़ीक़ थे उन्हें तिश्नगी ने हरा दिया जिन्हें बेबसी न हरा सकी उन्हें फिर न कोई हरा सकाजो ज़रूरतों के […]

कविता धार्मिक

रमज़ान जा रहा है

कविता: रमज़ान जा रहा हैकवि: नासिर मनेरीसंस्थापक व अध्यक्ष: मनेरी फाउंडेशन, इंडिया ग़मगीन सब को कर के मेहमान जा रहा है।कर के उदास माह-ए-गुफरान जा रहा है।। मस्जिद की रौनकें भी अब खत्म हो रही हैं।सदमा हज़ार देकर रमज़ान जा रहा है।। रोजा नमाज़, सहरी, इफ्तारी व तरावीह।हमराह-ए-हर सआदत मेहमान जा रहा है।। रहमत थी, […]