गोरखपुर

तरावीह की नमाज़ बीस रकअत है, कमी करना नाजायज़: उलमा-ए-किराम

गोरखपुर। उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्प लाइन नंबरों पर शुक्रवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा आदि के बारे में सवाल किए। उलमा-ए-किराम ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया।

  1. सवाल: तरावीह की रकअतों में कमी करना मसलन दस या आठ रकअत पढ़ना कैसा? (नवेद आलम, खोखर टोला)

जवाब : तरावीह की नमाज़ बीस रकअत है। नमाजे तरावीह की रकअतों में कमी करना नाजायज ओ हराम और शरीअत पर ज्यादती है जो शख़्स ऐसा करे सख्त गुनाहगार और अज़ाबे दोजख का सज़ावार है। (मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी)

  1. सवाल : जो शख़्स किसी वजह से रोज़ा न रख सका वो भी सदका-ए-फित्र देगा? (तौसीफ, रहमतनगर)

जवाब : जी हां, कि सदका-ए-फित्र वाजिब होने के लिए रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं। (मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी)

  1. सवाल : तरावीह की नमाज़ छोड़ना कैसा? (गुलाम मोहम्मद, इलाहीबाग)

जवाब: नमाज़े तरावीह का पढ़ना हर आकिल व बालिग मर्द और औरत पर सुन्नते मुअक्कदा है बिला वजह इसे छोड़ना जायज़ नहीं। (मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी)

  1. सवाल : क्या ग़रीबों को माले जकात बता कर देना लाज़िम है? (मोहम्मद नाजिम, छोटे क़ाज़ीपुर)

जवाब: नहीं। यह लाज़िम नहीं की ग़रीब को जकात कह कर ही दिया जाए बल्कि किसी भी मुनासिब नाम से जकात ग़रीब को दे सकते हैं ताकि ग़रीब की इज़्ज़ते नफ्स (सेल्फ रिस्पेक्ट) को ठेस न पहुंचे। (कारी मोहम्मद अनस रज़वी)

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