गोरखपुर

ईद-उल-अज़हा के साथ मनाया जाएगा अज़ीम हस्तियों का उर्स-ए-पाक

गोरखपुर। ज़िलहिज्जा इस्लाम धर्म का 12वां व अंतिम महीना है। ज़िलहिज्जा यानी हज वाले महीने में मुसलमान हज करते हैं। माहे ज़िलहिज्जा की 10 तारीख़ को ईद-उल-अज़हा (बक़रीद) पर्व मनाया जाता है। पर्व के मौके पर मुस्लिम समाज द्वारा लगातार तीन दिन तक क़ुर्बानी की जाती है। पर्व के मद्देनज़र क़ुर्बानी के लिए जानवरों की खरीद फरोख्त शुरू हो चुकी है। आसपास के ग्रामीण इलाकों से बकरे बिकने के लिए शहर लाये जा रहे हैं। हालांकि अभी बकरों का बाजार लगना शुरू नहीं हुआ है। कुछ लोगों ने कुर्बानी के लिए बकरे घरों में भी पाले हुए हैं। क़ुर्बानी के बकरे बेचने वाले मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों जाफ़रा बाज़ार, रसूलपुर, खूनीपुर, अहमदनगर चक्शा हुसैन, इलाहीबाग, पिपरापुर, बहरामपुर सहित कई इलाकों में घूम रहे हैं।

सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने बताया किईद-उल-अज़हा पर मुस्लिम समाज के लोग साफ-पाक होकर ईदगाह में नमाज़ पढ़ते हैं। नमाज़ के बाद क़ुर्बानी दी जाती है। ईद-उल-अज़हा के जरिए भाईचारे व शांति का संदेश दिया जाता है। क़ुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-सबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटने का रिवाज है। वहीं जुलाई माह में ही देश विदेश की कई अज़ीम हस्तियों का उर्स-ए-पाक भी मनाया जाएगा। मुस्लिम समाज द्वारा क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की जाएगी।

मकतब इस्लामियात के शिक्षक कारी मो. अनस रज़वी ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम में क़ुर्बानी देना वाज़िब है। दीन-ए-इस्लाम में क़ुर्बानियों का स्वर्णिम इतिहास रहा है, उसी में से एक ईद-उल-अज़हा पर्व है। जो एक अज़ीम पैगंबर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी के लिए याद किया जाता है। इस उम्मत का कोई भी मुसलमान क़ुर्बानी करेगा तो उसे उस अज़ीम क़ुर्बानी के सवाब के बराबर अता होगा जो हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम व हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने की थी।

चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने बताया कि अल्लाह का क़ुरआन-ए-पाक में इरशाद है कि “ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो।” माहे ज़िलहिज्जा की 10, 11 व 12 तारीख़ क़ुर्बानी के लिए खास दिन है। ईद-उल-अज़हा के मौके पर मुस्लिम समाज बड़ी संख्या में जानवरों की क़ुर्बानी करता है। क़ुर्बानी रोजगार का बहुत बड़ा जरिया भी है। तीन दिन तक होने वाली क़ुर्बानी से जहां गरीब तबके को मुफ्त में गोश्त खाने को मिलता है वहीं मदरसा, पशुपालकों, बूचड़ों-कसाईयों, पशुओं व चमड़े को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले गाड़ी वालों, चारा व पत्ते बेचने वालों, रोटियां बनाने वाले होटलों एवं चमड़ा फैक्ट्रियों को काफी फायदा होता है। करोड़ों लोगों का रोजगार क़ुर्बानी से जुड़ा हुआ है।

-इन अज़ीम हस्तियों का मनाया जाएगा उर्स-ए-पाक

1 ज़िलहिज्जा को हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह बिन उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हु, 3 ज़िलहिज्जा को हज़रत सैयदना अबू ज़र जुन्दब अल ग़फ़्फारी रदियल्लाहु अन्हु व क़ुत्बे मदीना हज़रत अल्लामा मौलाना ज़ियाउद्दीन मदनी रज़वी अलैहिर्रहमां, 7 ज़िलहिज्जा को हज़रत सैयदना इमाम मोहम्मद अल बाक़िर रदियल्लाहु अन्हु, 9 ज़िलहिज्जा को हज़रत सैयदना मुस्लिम बिन अक़ील रदियल्लाहु अन्हु, 10 ज़िलहिज्जा को मखदूम जहानियां हज़रत सैयद जलालुद्दीन हुसैन अलैहिर्रहमां, 14 ज़िलहिज्जा को हज़रत सैयदना अब्दुर्रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु, 15 ज़िलहिज्जा को हज़रत तमीम अल अंसारी रदियल्लाहु अन्हु व अशरफुल फुकहा हज़रत मुफ़्ती मोहम्मद मुजीब अशरफ क़ादरी, रज़वी अलैहिर्रहमां, 18 ज़िलहिज्जा को तीसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत सैयद शाह आले रसूल अहमदी अलैहिर्रहमां व हज़रत सदरुल अफ़ाज़िल मौलाना सैयद मोहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैहिर्रहमां, 19 ज़िलहिज्जा को हज़रत अबू उबैदा आमिर बिन जर्राह रदियल्लाहु अन्हु, 23 ज़िलहिज्जा को हज़रत मुबल्लिगे आज़म मौलाना शाह अब्दुल अलीम सिद्दीक़ी मेरठी अलैहिर्रहमां, 27 ज़िलहिज्जा को हज़रत शैख़ अबू बक़र शिब्ली अलैहिर्रहमां, 28 ज़िलहिज्जा को हज़रत इमाम शहाबुद्दीन अबुल फज़ल अहमद इब्ने हजर अस्क़लानी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया जाएगा।

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