कविता

मंकबत: वारिस ए पाक

पयाम ए हक़ है पयाम ए वारिस
ख़ुदा ही जाने मक़ाम ए वारस

हैं उस के वारिस हुज़ूर ए अकरम
जो होगा दिल से गुलाम ए वारिस

भटक नही सकता राह ए हक़ से
जिसे मयस्सर है जाम ए वारिस

है इश्क़ का बस यही तक़ाज़ा
ज़ुबाँ पे हर दम हो नाम ए वारिस

फिर आया सालाना उर्स ए अक़्दस
सजी है महफ़िल बनाम ए वारिस

ग़रज़ उसे क्या जहाँ से फ़ैसल
है जिस के दिल में क़याम ए वारिस

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *