पयाम ए हक़ है पयाम ए वारिस
ख़ुदा ही जाने मक़ाम ए वारस
हैं उस के वारिस हुज़ूर ए अकरम
जो होगा दिल से गुलाम ए वारिस
भटक नही सकता राह ए हक़ से
जिसे मयस्सर है जाम ए वारिस
है इश्क़ का बस यही तक़ाज़ा
ज़ुबाँ पे हर दम हो नाम ए वारिस
फिर आया सालाना उर्स ए अक़्दस
सजी है महफ़िल बनाम ए वारिस
ग़रज़ उसे क्या जहाँ से फ़ैसल
है जिस के दिल में क़याम ए वारिस