कविता सामाजिक

सब याद रखा जाएगा

वो दिसम्बर की
थरथराती शामों के
घटाटोप अंधेरों में
निहत्थों पर तुम्हारा
लाठियाँ बरसाना
आँसू गैस के गोलों से
तुम्हारा वो ज़ुल्म ढाना
कैम्पसों को वो तुम्हारा
छावनी में तब्दील कर देना
फ़िर लाइबेरियों में घुस कर
तबाही मचाना
जैसे हमारे क़लम किताबों से
कोई पुरानी सी दुश्मनी निभाना
फ़िर सैंकड़ों बेकसूरों को
झूठे इलज़ामों में फंसा कर
ख़ुद की फ़र्जी देश भक्ति
साबित करना
हक़ बोलने वालों को
ज़ोर के बल पे चुप कराना
बार बार ज़ुल्म की दास्तानें दोहराना
फ़िर उस ज़ुल्म के बदले में
हमारा वो बुलंद हौसलों की
कहानी लिखना
हमें याद है सब और
सब याद रखा जाएगा
तुम भुल भी जाओ अगर
वे ज़ुल्म की रातें
तो हम याद दिलाएंगे
तुम्हारा अहंकार हारेगा
हमारे हौसले जीतेंगे
ये हिम्मत रंग लाएगी
तुम वापस जाओगे
और इंक़लाब आएगा

सिद्दीक़ी मुहम्मद उवैस
15 December 2021

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