कविता

उठो कवीराज अब आंखें खोलो

उठो कवीराज अब आंखें खोलो,,
शिमला की मस्जिद, वक्फ बोर्ड बिल पर कुछ तो बोलो…

खोली थी जो तुम्हारे आका ने जो मुहब्बत की दुकान,,
देखो हिमाचल में बिक रहा उसमें नफरत का सामान…

तुम तो चले थे भारत जोड़ने,,
देखो तुम्हारे लोग लगे हैं शिमला में मस्जिद तोड़ने…

कहां गये तुम्हारे आका, कोई कुछ क्यों नहीं बोलता,,
हिमाचल, वक्फ बोर्ड बिल, माबलिंचिंग पर क्यों अपना मुंह नहीं खोलता…

लगता है लगे हैं तुम्हारे आका, अपने पिता का राजधर्म निभाने,,
तभी तो लगे हैं तुम्हारे लोग, शिमला में बाबरी दोहराने…

तुम तो करते थे नफरत तोड़ने, देश जोड़ने की बात,,
बोलो अब कहा गए तुम्हारे वो जज़्बात…!

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