कविता

ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँ

ऐ जान ए जां मैं फकत तुझसे प्यार करता हूँ
तुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार करता हूँ

मुझे पता है दगा है तुम्हारी फितरत में
मगर मैं फ़िर भी तेरा अयतेबार करता हूँ

तेरे नसीब की खुशियाँ तुझे मुबारक हो
मैं रोज़ गम के समंदर को पार करता हूँ

इसी सबब से तेरा ज़रफ देखने के लिए
कभी कभी तो मैं तुझसे उधार करता हूँ

मेरा उसूल है है मैदान ए जंग में रौशन
मैं पीठ पर नहीं सीने पे वार करता हूँ

अफरोज रौशन किछौछवी

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