कविता

ग़ज़ल: बिक गया वो शख्स आखिर कौड़ियों के दाम पर

रात की तारीकियों में रौशनी के नाम पर
एक दीया मैंने जला कर रख दिया है बाम पर

मेरे अपनों ने मुझे कुछ इस तरह रुस्वा किया
मेरा दामन चाक कर डाला रफू के नाम पर

एक दूजे से लिपट कर रो रहे थे वालिदैन
लाडले परदेश को जब भी गए थे काम पर

क्या बताऊँ आपको मैं अपने दिल की कैफियत
इश्क़ में गुज़री है क्या – क्या इस दिल ए नाकाम पर

खुद को सबसे कीमती होने को था जिसको गुरूर
बिक गया वो शख्स आखिर कौड़ियों के दाम पर

पास मेरे जीते जी रौशन कोई आया नहीं
आज मेला सा लगा है ज़िंदगी की शाम पर

अफरोज रौशन किछौछवी

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