गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान अल्लाह की इबादत करते हुए आधा बीत गया। रविवार को करीब 14 घंटा 25 मिनट लंबा 15वां रोजा अल्लाह की हम्दो सना में गुजरा। मस्जिदें नमाज़ियों से आबाद है। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत जारी है। घरों में औरतें इबादत में मश्गूल हैं। नफ्ल नमाज़ कसरत से अदा की जा रही है। सामूहिक रोज़ा इफ्तार की दावतों में तेजी आ गई है। बाज़ार में ईद की खरीददारी शुरु हो चुकी है। मग़फिरत का आधा अशरा बीत चुका है।
कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि भूखे-प्यासे रहकर इबादत में खो जाने वाले रोजे़दार बंदे खुद को अल्लाह के नज़दीक पाते हैं और आम दिनों के मुकाबले रमज़ान में इस क़ुर्बत (करीबी) के एहसास की शिद्दत बिल्कुल अलग होती है, जो आमतौर पर बाकी के महीनों में नहीं होती है। रमज़ान की फज़ीलतों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें ग़रीबों की भूख का एहसास हो सकता है। रमज़ान के महीने में ही क़ुआन-ए-पाक दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में क़ुआन-ए-पाक सुनना बेहद सवाब का काम है।