गोरखपुर जीवन चरित्र

माह-ए-मुहर्रम : सत्य के लिए लड़ते हुए शहीद हुए इमाम हुसैन

मस्जिदों व घरों में बयां की गई हज़रत इमाम हुसैन की शान

गोरखपुर। माह-ए-महुर्रम के मौके पर शहर की प्रमुख मस्जिदों व घरों में जारी महफिल ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ के तहत बुधवार को उलेमा-ए-किराम ने हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शान बयान की। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात व मनकबत पेश की गई। सलातो सलाम का नज़राना पेश किया गया।

बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन क़ादरी व मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम के सिद्घांत, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और अल्लाह के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते रहे। हजरत सैयदना इमाम हुसैन मक्का से सपरिवार कूफा के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में यजीद के षडयंत्र के कारण उन्हें कर्बला के मैदान में रोक लिया गया। तब इमाम हुसैन ने यह इच्छा प्रकट की कि मुझे सरहदी इलाके में चले जाने दो, ताकि शांति और अमन कायम रहे, लेकिन जालिम यजीद न माना। आखिर में सत्य के लिए लड़ते हुए हज़रत इमाम हुसैन शहीद हुए।

अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी में मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन, हाफ़िज़ अज़ीम अहमद व हाफ़िज़ आरिफ ने कहा कि इल्म व फज्ल व तमाम अहले तारीख का एक राय फैसला है कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन इल्म व फज्ल में बड़ा मर्तबा रखते थे। आपके दौर के बड़े-बड़े आलिम आपसे फतवा दर्याफ्त करते थे।

पुराना गोरखपुर इमामबाड़ा गोरखनाथ में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि जालिम यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे तो उसने पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इंकार कर दिया तो उसने इमाम हुसैन को कत्ल करने का फरमान जारी कर दिया। कर्बला के तपते रेगिस्तान में तीन दिन के भूखे प्यासे हज़रत इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को शहीद कर दिया गया। अहले बैत पर बेइंतहा जुल्म किए गए।

हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में मौलाना मो. उस्मान बरकाती ने कहा कि इमाम हुसैन की तकरीर व उम्दा तहरीर (लेखनी) की कोई नज़ीर (उदाहरण) नहीं मिलती। आज भी आपकी तकरीरें व खुत्बात तारीख के सफ़हात
(पन्नों) की जीनत (खूबसूरती) बने हुए है। जिन्हें पढ़कर आपके जोरे बयान और फसाहत व बलागत का अंदाजा होता है। हज़रत इमाम हुसैन ने अपने बड़े भाई हज़रत इमाम हसन के साथ पच्चीस हज अदा किए।

इसी तरह नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, मक्का मस्जिद मेवातीपुर इमामबाड़ा, गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह, ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो आदि में भी ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिल हुई।

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