22 मई से हो रही है मेले की शुरूआत
गोरखपुर। हज़रत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां अलैहिर्रहमां आमजन में बाले मियां के नाम से मशहूर हैं। हज़रत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां अलैहिर्रहमां का मुख्य मेला रविवार 22 मई से शुरू हो रहा है। जो करीब एक माह तक चलेगा। मेला बहरामपुर स्थित बाले मियां के आस्ताने पर अकीदत के साथ सजता है। पूर्वांचल की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल माने जाने वाले इस ऐतिहासिक मेले में हजारों हिंदू-मुस्लिम अकीदतमंदों की सहभागिता होती है। अगर आपको हिंदू-मुस्लिम एकता देखनी हो तो इस मेले में ज़रूर आइए। मेले की तैयारियां जोरशोर से जारी है। मेले में मनोरंजन के लिए तमाम तरह के झूला वगैरा मिलेंगे तो वहीं खानपान व अन्य घरेलू सामानों की दुकान भी सजेंगी। इस रविवार को भी आस्ताने पर फातिहा पढ़ने सैकड़ों लोग जुटे।
हाफ़िज़ खुर्शीद आलम ने बताया कि हर साल लगन की रस्म पलंग पीढ़ी के रूप में मनाई जाती है। बहरामपुर में हर साल जेठ के महीने में मेला लगता हैं जहां पर आसपास के क्षेत्रों के अलावा दूर दराज से हजारों संख्या में हिंदू-मुस्लिम अकीदतमंद यहां आते हैं। मेला 22 मई से शुरू होकर 22 जून तक चलेगा। कोरोना काल में मेला का आयोजन नहीं हो सका था। संभावना है कि इस बार काफी संख्या में अकीदतमंद जुटेंगे।
लगन का वाकया मशहूर है
मुस्लिम मामलों के जानकार मोहम्मद आज़म व नवेद आलम ने बताया कि किताबों में लिखा हुआ है कि हज़रत गाजी मियां (बाले मियां) की शोहरत जब दूर-दूर तक पहुंची। उस जमाने में रूधौली (बाराबंकी) की रहने वाली जोहरा बीबी पैदाइशी अंधी थी। उस वक्त आप की उम्र 12 साल की थी एक दिन आपके पिता सैयद जमालुद्दीन ने घर में गाजी मियां की करामातों का ज़िक्र किया। बोले जो हाजतमंद बहराइच जाता है अल्लाह के फज्ल से गाजी मियां के वसीले से दिली मुराद पा जाता है। उन्होंने दुआ की ऐ वली को शहीद को दर्जा अता करने वाले अल्लाह, गाजी मियां के तुफैल मेरी लड़की को आंख वाला कर दे। रौजे पर हाजिरी दूंगा। इधर जोहरा बीबी ने अहद किया कि अगर मैं आंख पा जाऊंगी तो मजार शरीफ पर हाजिरी दूंगी। आप गाजी मियां की मोहब्बत में ऐसी गुम हुई की दिन रात गाजी मियां का नाम ज़ुबान से जारी रहता। एक रात ख़्वाब में देखा दरवाजे पर कोई घुड़सवार आया है। पानी मांग रहा है। जोहरा बीबी पानी लेकर दरवाजे पर पहुंचीं और गिलास सवार की तरफ बढ़ाती है। आवाज़ आई मेरी तरफ देखो। बस उसी वक्त आंखें रौशन हो गई। बहराइच जाने की बात करती है। यहां पर मजार की चौहद्दी तामीर करवाती हैं। जब यहां आती हैं तो फिर यहीं की होकर रह जाती हैं। यहीं पर रह कर आपका इंतकाल 19 साल की उम्र में हुआ। यहीं पर आपका मजार है। जेठ माह में जोहरा बीबी साहिबा का इंतकाल हो गया और साल गुजरते रहे और फिर एक दिन ऐसा आया कि इस दिन को लोगों ने लगन के नाम से मशहूर कर दिया। गाजी मियां की वास्तविक मजार बहराइच में है।