धार्मिक

मीलाद शरीफ और क़ुर’आन

हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की ज़ात व औसाफ व उनके हाल व अक़वाल के बयान को ही मिलादे पाक कहा जाता है, हुज़ूर सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की विलादत की खुशी मनाना ये सिर्फ इंसान का ही खास्सा नहीं है बल्कि तमाम खलक़त उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम का मीलाद पढ़ता है, यहां क़ुर्आन की सिर्फ चंद आयतें पेश करता हूं वरना तो पूरा क़ुर्आन ही मेरे आका सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की शान से भरा हुआ है मगर कुछ आंख के अंधे और अक़्ल के कोढ़ियों को ये आयतें नहीं दिखतीं और वो लोग इसको भी शिर्क और बिदअत कहते हैं माज़ अल्लाह,हवाला मुलाहज़ा फरमायें,

क़ुरआन(कंज़ुल ईमान):- वही है जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा
(पारा 10,सूरह तौबा, आयत 33)

क़ुरआन(कंज़ुल ईमान):- बेशक तुम्हारे पास तशरीफ लायें तुममे से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान
(पारा 11, सूरह तौबा, आयत 128)

पहली आयत में मौला तआला उन्हें भेजने का ज़िक्र कर रहा है और भेजा उसे जाता है जो पहले से मौजूद हो मतलब साफ है के महबूब सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम पहले से ही आसमान पर या अर्शे आज़म पर या जहां भी रब ने उन्हें रखा वो वहां मौजूद थे, और दूसरी आयत में उनके तशरीफ लाने का और उनके औसाफ का भी बयान फरमा रहा है, क्या ये उसके महबूब सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम का मीलाद नहीं है, क्या अब वहाबी खुदा पर भी हुक्म लगायेगा,

क़ुरआन(कंज़ुल ईमान):- बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ से एक नूर आया और रौशन किताब
(पारा 6,सूरह मायदा, आयत 15)

यहां नूर से मुराद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हैं और किताब से मुराद क़ुर्आने मुक़द्दस है।

क़ुरआन(कंज़ुल ईमान):- और याद करो जब ईसा बिन मरियम ने कहा …………….. और उन रसूल की बशारत सुनाता हूं जो मेरे बाद तशरीफ लायेंगे उनका नाम अहमद है
(पारा 28,सूरह सफ,आयत 6)

इस आयत में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मेरे आक़ा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम का मीलाद पढ़ रहे हैं, क्या अब वहाबी उन पर भी हुक्म लगायेगा,

कंज़ुल ईमान -और याद करो जब अल्लाह ने पैगम्बरों से अहद लिया.जो मैं तुमको किताब और हिकमत दूं फिर तशरीफ लायें तुम्हारे पास वो रसूल के तुम्हारी किताब की तस्दीक़ फरमायें तो तुम ज़रूर ज़रूर उन पर ईमान लाना और उनकी मदद करना, क्या तुमने इक़रार किया और उस पर मेरा भारी ज़िम्मा लिया, सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया फरमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और मैं खुद तुम्हारे साथ गवाहों में हूं, तो जो कोई इसके बाद फिरे तो वही लोग फासिक़ हैं। (पारा 3,सूरह आले इमरान, आयत 81-82)

ये आलमे अरवाह का वाकिया है जहां मौला ने अपने महबूब सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की शान बयान करने के लिए अपने तमाम नबियों को इकठ्ठा कर लिया यानि महफिले मिलाद सजा ली और उनसे फरमा रहा है के अगर तुम्हारे पास मेरा महबूब सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाए तो तुम्हे सब कुछ छोड़कर उसकी इत्तेबा करनी होगी, और आखिर के जुम्ले क्या ही क़यामत खेज़ हैं क्या फरमा रहा है के ” जो इस अहद को तोड़े तो वो फासिक़ है ” अल्लाह अल्लाह ये कौन कह रहा है हमारा और आपका रब कह रहा है, किससे कह रहा है अपने मासूम नबियों से कह रहा है, क्यों कह रहा है क्योंकि बात उसके महबूब सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की है इसलिए कह रहा है,,

आज हम उसके महबूब का ज़िक्र करें तो हम मुश्रिक
महफिले मीलाद सजायें तो हम मुश्रिक
भीड़ इकठ्ठा कर लें तो हम मुश्रिक
और रब जो कर रहा है उसका क्या, क्या रब तआला पर भी शिर्क का हुक्म लगाओगे वहाबियो,

जारी रहेगा………..

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