✍️ इतिहासकार जफर अंसारी साहब & जावेद शाह खजराना
इंदौर की होलकर सरकार द्वारा ताजियादारी को बढ़ावा दिया गया । ताजिया की बनावट से लेकर रखरखाव और कर्बला में मेले तक का इंतजाम होल्कारों की जानिब से किया गया इसलिए इसका नाम सरकारी ताजिया पड़ा।
शुरुआत में राजबाड़ा के बाहर बनता था 7 मंजिला ताजिया। राजबाड़ा के 7 चक्कर लगाने के बाद शुरू होता है जूलूस। वक्त के साथ ताजिया की ऊंचाई कम होती गई लेकिन परंपरा आज भी जारी है।
होलकर रियासत के वक्त 19वीं शताब्दी के आसपास महाराजा होलकर का ‘सरकारी ताजिया’ राजबाड़ा के बाहर तंबू लगाकर तैयार किया जाता था। यानि ताजिया खुले में रखा जाता था। जैसा कि आप फोटो में देख सकते है।
महाराजा यशवंत राव होलकर प्रथम तथा महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय की ताजिया में काफी अकीदत थी। तुकोजीराव महराज ने तो बकायदा कर्बला के लिए जमीन खान नदी के किनारे आवंटित की थी। सिर्फ यही नहीं तुकोजीराव महराज ने तो कर्बला के पास अपना लालबाग महल भी बनवाया। जो कर्बला के ठीक पास है।
जिस रास्ते से यशवंत राव होलकर अपने माणिक बाग निवास और लालबाग महल जाते थे । उस सड़क का नाम भी यशवंत रोड़ मशहूर हुआ। ताजिया बनाने में होलकरों द्वारा सरकारी मदद मिलती रही। होलकरों को ताजिया से बेपनाह मोहब्बत और अकीद्त थी । इसलिए ताजिया को उठाकर राजबाड़ा के 7 चक्कर लगाए जाते थे ताकि राज्य में खुशहाली बनी रहे। होल्कर सेना का बैंड और तुरंग (पुंगी) भी रोजाना बजती थीं।
सरकारी ताजिए की लंबाई 7 मंजिला तक होती थी। जब नंदलालपुरा से टेलीग्राफ लाइन की शुरुआत हुई तो इस बात का ध्यान रखा कि ताजिया कर्बला तक आसानी से जा सके। लेकिन बाद में बिजली के तारों ने सारा गणित बिगाड़ दिया।
ताजिए की व्यवस्था के लिए महाराजा होलकर पुलिस का पहरा मोहर्रम की 8 तारीख तक लगता था। हर रोज रात को सेना का बैंड बजाया जाता ।
मोहर्रम की 7 तारीख को पूरे लाव लश्कर के साथ होलकर रियासत की ओर से आलम निकाला जाता था जिसमें बांस पर तलवारें और परचम होता था।
इसमें वाद्ययंत्र बजाने वाले, घोड़े, कड़ाबीन बेड़े, डफली वाले, हलकारे, जासूस, चोबदार और होलकर सेना के मुख्य अधिकारी हाथी पर बैठे होते थे। 40 सेर आटे की रोटी और 15 सेर मसूर की दाल बनाते थे। उसे चांदा कहते थे। इसे जूनी इंदौर में रहने वाले शाह/फकीर व अन्य गरीब लोगों में बांटा जाता था।
ताजिया राजबाड़ा के 7 चक्कर लगाने के बाद गोपाल मंदिर के सामने से खजूरी बाजार, बोहरा बाजार, बजाज चौक, पीपली बाजार से वापस इमामबाड़ा जाता था।
ताजिया विसर्जन के लिए शाम 4:30 बजे उठता। महाराजा होलकर अवलोकन करने हाथी पर बैठकर कर्बला आते थे। उसे बकायदा सलामी दी जाती थी।
सरकारी ताजिया के आगे बढ़ने से पहले तुरंग बजाई जाती थी। ताजिया के दोनों तरफ चोबेदार खड़ा होकर चोब लहराता था। ये परंपरा आज भी कायम है।
राजबाड़ा के बाहर खेमे के बाहर खड़ा सरकारी ताजिया 1880 का है। इस समय सरकारी ताजिया का निर्माण राजबाड़ा के बाहर टेंट लगाकर किया जाता था।
1900 के आसपास राजबाड़ा के सामने जहां अन्ना पान वाले की दुकान है उसी सड़क पर पुराना इमाम बड़ा था। जो बोंझाकेट सड़क निकलने से गोपाल मंदिर के पास शिफ्ट किया गया।
महाराजा होलकर ने गोपाल मंदिर के नजदीक इमामबाड़े का निर्माण करवाया। ये इमाम बाड़ा आज भी है। गौरतलब है कि सरकारी ताजिए के आगे होलकर सेना का ताजिया चलता था, जो किला मैदान से निकलता था। उस समय सरकारी ताजिया को महाराजा होलकर का ताजिया कहा जाता था।
चित्र व जानकारी: इतिहासकार जफर अंसारी के संग्रहालय से/ कुछ जानकारी जावेद शाह खजराना द्वारा