दुनिया तेरा आईना हिन्दोस्ताँ
कितना प्यारा है मेरा हिन्दोस्ताँ
क्यूँ न हो यकता- ए- आलम हुस्न में
तू तो है जन्नत नुमा हिन्दोस्ताँ
काश लिख देता ख़ुदा ऐसा नसीब
तुझ पे हो जाते फ़िदा हिन्दोस्ताँ
इस जहाँ के इतने सारे मुल्कों में
कौन है सानी तेरा हिन्दोस्ताँ
किस क़दर शफ़्फ़ाफ़ है जाँ बख़्श है
तेरा पानी ओर हवा हिन्दोस्ताँ
देखो तो दुनिया के नक़्शे को ज़रा
फूल जैसा है खिला हिन्दोस्ताँ
फ़ख़्र करता हूँ के मेरा मुल्क है
ख़ूबसूरत ख़ुशनुमा हिन्दोस्ताँ
इस के आगे दुनिया अब जचती नहीं
दिल को इतना भा गया हिन्दोस्ताँ
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
सम्पादक: उर्दू साप्ताहिक समाचार पत्र “सदा -ए- बिस्मिल” बाराबंकी सआदतगंज, बाराबंकी, यूपी