➡कज़ा हर रोज़ की 20 रक्अ़तें होती हैं,
👉🏻2 फ़र्ज़ फ़ज्र के
👉🏻4 फ़र्ज़ जो़हर के
👉🏻4 फ़र्ज़ अ़स्र के
👉🏻3 फ़र्ज़ मग़रिब के
👉🏻4 फ़र्ज़ इशा के
👉🏻3 वित्र इशा के
निय्यत इस त़रह़ करे
जैसे- फ़ज्र की क़ज़ा हो तो यूं निय्यत करे:-
“सबसे पहली फ़ज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई उसको अदा करता हूं”!
हर नमाज़ में इसी त़रह़ निय्यत कीजिए! और अगर निय्यत में लफ़्ज़ “क़ज़ा” कहना भूल गए तो कोई हरज नही, नमाज़ हो जाएगी!
ज़्यादा क़ज़ा हो तो उनके लिए आसानी
पहली आसानी :
🔸अगर किसी पर ज़्यादा नमाज़े क़ज़ा हो और वो आसानी के लिए रुकूअ़ और सज्दे की तस्बीह़ तीन तीन बार पढ़ने के बजाए एक एक बार पढ़ेगा तो भी जाएज़ हैं!
दुसरी आसानी :
🔸फ़ज्र के अलावा दुसरी चारों फ़र्ज़ नमाज़ों की तीसरी और चौथी रक्अ़त में सूरए फ़ातिह़ा (अलह़म्द शरीफ़) की जगह सिर्फ़ तीन बार “सुब्ह़ान अल्लाह” कह कर रुकूअ़ में चला जाए, मगर वित्र की नमाज़ में ऐसा न करे!
तीसरी आसानी :
🔸क़ादए अख़ीरह (नमाज़ में आख़री बार बैठने को क़ादए अख़ीरह कहते हैं) तशह्हुद (यानी अत्तह्हिय्यात) के बाद दुरूदे इब्राहीम और दुआ़ की जगह सिर्फ़ “अल्लाहुम्मा सल्लि अ़ला मुह़म्मदिंव व आलेही” कह कर सलाम फैर दे!
चौथी आसानी :
🔸वित्र की तीसरी रक्अ़त में दुआ़ए कुनूत की जगह एक बार या तीन बार “रब्बिग़्फिरली” कहे!