गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान का दसवां रोज़ा व पहला अशरा रहमत का रज़ा-ए-इलाही में गुजरा। बंदों ने रोज़ा, नमाज़, तिलावत, तस्बीह, खैरात व जकात के जरिए अल्लाह को राज़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तहज्जुद, इशराक, चाश्त, सलातुल अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह की नमाज़ कसरत से पढ़ी। दस दिन तक अल्लाह का फज़्ल व करम खुशूसी तौर पर मुसलमानों पर बराबर बरसा। नेकियों व रोज़ी में वृद्धि हुई। वहीं मंगलवार की शाम से रमज़ान का दूसरा अशरा मग़फिरत का शुरू हो गया। बंदों की पूरी कोशिश रहेगी कि वह खूब इबादत कर अल्लाह से मग़फिरत तलब करें। मंगलवार को ही लाल जामा मस्जिद गोलघर, हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में तरावीह की नमाज़ के दौरान एक क़ुरआन-ए-पाक मुकम्मल हुआ।

रमज़ान सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत : वकीला
बक्शीपुर की समाज सेविका वकीला ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम के पांच बुनियादी वसूल में रोज़ा भी एक है और इस अमल के लिए मुकद्दस रमज़ान मुकर्रर किया गया। अल्लाह भी इबादत गुजार रोज़ेदार बंदे को बदले में रहमतों और बरकतों से नवाज़ता है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुख्तलिफ मौकों पर रमज़ान की फजीलत बयान फरमाई है और इसकी अज़मत और अहमियत दिलों में बिठायी है। आपने फरमाया है कि यह महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है। यह हमदर्दी व गमख्वारी का महीना है। फिर फरमाया यह ऐसा महीना है जिसमें मोमिन का रिज़्क बढ़ा दिया जाता है। रमज़ान के महीने में की गई इबादत व नेकी का सवाब कई गुना हो जाता है।