सिनेमा जगत

सिंधी फिल्मों की पहली हिरोइन शिला रमानी ने महू में गुमनाम जिंदगी गुजारी

गुमनाम अदाकारा शिला रमानी की 15 जुलाई को 8वी बरसी है।

दोस्तों !!
इंदौर में बहुत~सी फिल्मी हस्तियां पैदा हुई हैं जैसे ललिता पंवार, लता मंगेशकर , जॉनी वाकर , सलीम खान , विजेंद्र घाटगे और सलमान खान ।

इंदौर के पास महू नगर वैसे तो मिलिट्री एरिया है ।
जहां सेना के अफसर और सैनिक बसते है। लेकिन इन्हीं अफसरों की बेटियों में से पूजा बत्रा , सेलिना जेटली और प्रियंका चोपड़ा जैसी अकादाराओं ने महू में किशोर अवस्था से लेकर जवानी की दहलीज में कदम रखा और फिल्म इंडस्ट्रीज में खूब नाम कमाया।

लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी है कि 50 के दशक की हिंदी फिल्मों की खूबसूरत और मशहूर हिरोइन जिन्हें मिस शिमला का खिताब भी मिला था और वो सिंधी फिल्मों की पहली हिरोइन भी थी। उन्होंने अपना आखरी वक्त इंदौर के पास इसी महू नगर में बिताया और यही आखरी सांसे भी ली। ज्यादा पुरानी बात नहीं है सिर्फ 8 साल पहले की बात है।

उस खूबसूरत अदाकारा का नाम था शिला रमानी।🥰
देवानंद , गुरुदत्त , किशोर कुमार , सुनील दत्त के साथ काम कर चुकी शिला पहली सिंधी फिल्म अबाना की हीरोइन थी । जिसमें साधना ने भी काम किया था।
सुनील दत्त की पहली फिल्म रेलवे प्लेटफार्म की शिला सह~नायिका थी।

2 मार्च 1932 को पाकिस्तान के कराची में पैदा हुई शिला रमानी के वालिद कराची कॉलेज में प्रोफेसर थे। शिला रमानी के ननिहाल वालों ने इस्लाम कुबूल कर लिया था उनके मामू शेख लतीफ पाकिस्तानी फिल्मों के प्रोड्यूसर थे। उन्होंने अपनी भांजी शिला की हमेशा हौसला आफजाई की। उन्हें रुपहले पर्दे पर मदद की।

आजादी के बाद हालत बदले।
तकदीर उन्हें हिंद के मसूरी शहर ले आई।
केवल रमानी और उनकी बीवी और बेटी सभी मसूरी में एक संत श्री नाथजी के संपर्क में आए।

रमानी फैमली इन्हीं संत श्री नाथजी की ख्वाबगाह के बगल की कुटी में किराए से रहने लगी। शीला रमानी बहुत~ही हसीन थी। वह इतनी हसीन थी कि यदि कभी वह कुटिया की सीढ़ी पर खड़ी होती तो वहाँ से गुज़रने वाले राजा-महाराजा तक रुक जाते और उसे निहारते!

संत श्री नाथजी महाराज रमानी फैमिली का बहुत ख्याल रखते थे। उन्होंने शिला की तरक्की को लेकर भविष्यवाणी भी की थी। लिहाजा आने वाले सालों में शिला बंबई में एक मशहूर फिल्म स्टार बन गईं।

हुआ यूं कि चेतन आनंद अपनी फिल्मों के लिए खूबसूरत लड़कियों की तलाश में भटकते रहते थे। लिहाजा उन्होंने 1950 की मिस शिमला शिला रमानी और अगले साल की मिस शिमला कल्पना कार्तिक को फिल्मों के लिए सिलेक्ट कर लिया। कल्पना और शिला पक्की सहेलियां थी।

इन दोनों मिस शिमला को एक साथ लेकर उन्होंने टैक्सी ड्राइवर फिल्म बनाई जिसके हीरो देवानंद थे। इसके बाद उन्होंने फंटूश बनाई उसमें भी शिला को लिया। फंटूश की कामयाबी ने शिला को रातों~रात स्टार बना दिया।
बांबे की सड़कों पर चलना शिला के लिए दुश्वार हो गया क्योंकि उनके फैन्स उन्हें घेर लेते थे। ऐसे हालत में उन्हें बुरखे में भागना पड़ता।

1950 के दशक में शिला ने कई मकबूल फिल्मों में अदाकारी की । जिनमें “सुरंग” (1953), “तीन बत्ती चार रास्ता” (1953), “नौकरी” (1954) , “रेलवे प्लेटफार्म” (1955) , फंटूश (1956) और “अनोखी” (1956) काबिले जिक्र फिल्में हैं।

तीखे नैन नक्शों वाली शिला रमानी को देवानंद ने सेक्स सिंबल कहकर पुकारा तो चाहने वालों ने उन्हें खूबसूरती की देवी वीनस कहा। एक तरह शिला रमानी देव आनंद की मोहब्बत तो दूसरी तरफ उनकी सहेली कल्पना उनकी शरीक हयात यानी बीवी थी।

अपने मामू शेख लतीफ की पाकिस्तानी फिल्म अनोखी में काम करके उन्होंने आजादी के बाद पाकिस्तानी फिल्म में काम करने वाली पहली इंडियन हिरोइन का खिताब भी हासिल किया।

एक जमाने में वो लक्स गर्ल भी रही यानि लक्स साबुन के कवर और इश्तहार पर शिला की तस्वीर घर~घर पहुंचा करती थी ।

बला की खूबसूरत शिला का दिल इंदौर के पास महू में रहने वाले बिजनेसमैन जाल कोवासकी पर आ गया। वो एक पारसी थे। लिहाजा 1963 में शादी के बाद शिला कभी बांबे तो कभी न्यूयार्क तो कभी आस्ट्रेलिया रहने लगी।

महू में पोस्ट ऑफिस रोड़ पर उनका ससुराल है यानि जाल कोवास्की का बंगला। शादी के बाद कुछ अरसा यहां रहने के बाद अपने शौहर के साथ देश~विदेश में मशरूफ हो गई। 1984 में शौहर जाल कोवासाकी के इंतकाल के बाद शिला अपने दो बेटों की परवरिश में लगी रही। इनके 2 बेटे हैं। एक राहुल और दूसरे जाल कोवास्की जूनियर ।

शौहर के इंतकाल के बाद टूट चुकी शिला अक्सर बीमार रहने लगी। जब बीमारी ने ज्यादा घेरा तो अपने वतन लौट आई और महू स्थित अपने घर में बसेरा कर लिया।

एक जमाने में लोगों के दिलों की धड़कन कहे जाए वाली शिला महू की गुमनाम गलियों में बसर करने लगी। सन 2013 तक आते~आते आपकी तबियत बहुत नासाज रहने लगी। सिर्फ अपनी पुरानी सहेली कल्पना कार्तिक से बतियाती थी।

व्हील चेयर और बिस्तर पर 2 साल गुजरे।
अल्जाइमर रोग से आप पीड़ित थी। 2015 आते~आते उम्र भी काफी हो चुकी थी। बीमारी ने कमज़ोर और लाचार कर दिया। इंतकाल के दो दिन पहले शिला कोमा में चली गई।

जिस हिरोइन की एक झलक पाने के लिए बांबे की सड़कों पर जाम लग जाया करता था वो खूबसूरत अदाकारा बीमारी और गुमनामी के आलम में दुनिया को अलविदा कह गई। मानो वो फिल्मी दुनिया से नाराज हो।
बांबे से महज 550 किलोमीटर दूर महू में गुमनाम चली गई। किसी फिल्म वालों को कानों कान खबर ना है।

मिनी बांबे यानि इंदौर
15 जुलाई सन 2015 बरोज बुधवार के दिन महू में शिला रमानी ने 83 साल की उम्र में आखरी सांसे ली और इस बेदर्द जमाने को अलविदाई सलाम कह दिया। उनके इंतकाल पर फिल्म इंडस्ट्रीज के किसी भी शख्स ने कोई शोक संदेश ट्वीट नहीं किया ना ही किसी फिल्म वाले ने उनकी मय्यत में शिरकत की। घर वालों की मौजूदगी में पारसी रीति रिवाजों से आपका अंतिम संस्कार महू में हुआ।

सवाल उनके गुमनामी में जाने का नहीं बल्कि सवाल उन्हें याद ना करने का है। मुझे यकीन है मैं उन गिने~चुने लेखकों में शुमार हूं जो शिला रमानी को आज उनकी बरसी पर याद तो कर रहे हैं।

जब भी खूबसूरत अदाकारा शिला रमानी का जिक्र आता है । मुझे टैक्सी ड्राइवर फिल्म का उन्ही पर फिल्माया नगमा याद आ जाता है।

“ऐ मेरी ज़िन्दगी ,
आज रात झूम ले ,
आसमान को चूम ले ,
किसको पता है …..?कल आये के ना आये ”

✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)

9340949476

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