✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
जूनी इंदौर आलापुरा चौराहे पर मातृछाया बिल्डिंग के नीचे गोपी सेठ की दूध की दुकान है….
शुरू~शुरू में उनका दूध का कारोबार था।खूब मशहूर दुकान हुआ करती थी। धीरे~धीरे उन्होंने गर्मा~गर्म लजीज जलेबी और जायकेदार पोहे बनाना शुरू किया। दुकान चल पड़ी। आयटम बढ़ने लगे। जायकेदार समोसे , आलूबड़े और भजिए के साथ मलाईदार चाय बनने के बाद दूध का केसरी कड़ाव ठंडा पड़ने लगा। फिर बंद हो गया।
गोल मटोल , मोटे~ताजे जिस्म वाले गोपी सेठ ठेठ देहाती लेकिन बहुत ही उदार इंसान । ज्यादातर बंडी और कुर्ता~पायजामा पहनते। बड़ी~सी तोंद को खोले गोपी सेठ को काम करते देख सच में सेठ वाली फिलिंग आती थी। उम्र अब 85 के करीब होगी।
गोपी सेठ की दुकान के ठीक सामने कबाड़े की दुकान है। ये जगह काफी ऊंचाई पर है। पचास साल पहले यहां पुराने मकान हुआ करते थे। इन मकानों से बच्चे लुढ़ककर गोपी सेठ की दुकान तक आ जाते थे। उन दिनों ट्राफिक नहीं था। टांगे और सायकलें चला करती थी। ये नजारे चंगीराम के दंगे तक आम थे।
गोपी सेठ गर्मा~गर्म दूध को उछालते हुए कांच के गिलास में भरकर बेचते थे। हम जब भी दूध लेने जाते उनका ये करतब खड़े~खड़े देखते रहते। बिना दूध ढोले पतली धार से एक गिलास से दूसरे गिलास में दूध उंडेल देते थे। घर आकर हमने भी खूब ट्राय किया। दूध ढुल गया लेकिन गोपी सेठ की नकल नहीं कर सके।
हमारे घर में जर्मन के भारी भरकम गिलास हुआ करते थे। जब भी घर में मेहमान आते अम्मी दो रूपए देकर भेजती कि जाओ गोपी सेठ के यहां से पावभर दूध ले आओ।
मुझे अच्छी तरह याद है 2 रूपए में गिलास भर के पाव भर दूध आता और शाम चार बजे की चाय हम गिलास भर के पीते थे।
सन 2000 के बाद नए~नवेले रेस्टारेंट खुलने लगे। मार्केट में खुले दूध की जगह सांची की थैली और घर पर बंदी वाले आने लगे । सबकुछ बदलने लगा। गोपी सेठ का दूध का कड़ाव हमेशा~हमेशा के लिए यादों में खो गया।
कभी~कभार 2 रूपए की जगह 1 रुपया ही होता फिर भी उदार गोपी सेठ दूध दे देते। गरीब बच्चो को जलेबी और पोहे भी पुड़िया में बांधकर आठ आने और रूपए दो रूपए में ढेर सारी दे देते। उनकी इसी नेकदिली ने आज ये लेख लिखने पर मजबूर कर दिया।
बरसों बाद
जूनी इंदौर की तरफ से गुजरा निगाहें गोपी सेठ की बंद दुकान के शटर पर ठहर गई। एक पल के लिए गुजरा जमाना याद आ गया…
(फोटो प्रतिकात्मक है)