4 मार्च 1193 की रात थी सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की तबीयत बिगड़ती जा रही थी पिछले कई दिनों से वो काफी बीमार चल रहे थे। उनके बेड के करीब बैठे उनके एक दोस्त उनके लिए क़ुरआने पाक की तिलावत में मशगूल थे, लेकिन फिर भी इस रात सुल्तान बीमारी का दर्द बर्दाश्त नहीं कर सके और इस दुनिया से रुखसत हो गए।
सुल्तान की वफ़ात के समय उनके पास चंद दिरहम ही बचे थे (1 सोने का सिक्का और 40 चांदी के सिक्के) क्यूंकि उन्होंने अपनी अज़ीम दौलत अपनी सल्तनत में रहने वाली गरीब रियाया (जनता) को दे दी थी। उन्होंने जनाज़े की रस्म की अदाएगी तक के लिए कुछ नहीं छोड़ा था। वफ़ात के बाद सुल्तान के कफ़न-दफ़न का इंतजाम उनके दोस्तों ने अपने पैसे से करवाया। उन्हें सीरिया के शहर दमिश्क में उमय्यद मस्जिद के बाहर बगीचे में बने एक मकबरे में दफनाया गया था। असल में ये मकबरा एक कॉम्प्लेक्स का हिस्सा था जिसमें एक स्कूल और मदरसा अल-अज़ीज़िया भी शामिल था, जिसमें से कुछ स्तंभों और एक अंदौरनी मेहराब को छोड़कर बहुत कम बाकी बचा है।
सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की मौजूदा मजार की तामीर उस्मानी सुल्तान व खलीफा अब्दुल हमीद II ने अपने दौर-ए-हुकूमत में करवाई थी आगे चल कर जर्मनी के शहंशाह विल्हेम II ने मकबरे के लिए एक नया संगमरमर का ताबूत दान किया था, हालांकि असली ताबूत को तब्दील नहीं किया गया था। इसके बजाय मकबरा जो जायरीन के लिए खुला है उसमे अब दो कब्रें (पत्थर का ताबूत) हैं। संगमरमर एक किनारे पर रखा गया है और असल लकड़ी वाला है, जो सलाहुद्दीन अय्यूबी की कब्र को कवर करता है।