सुफीयाए किराम ने ईस्लाम की तबलीग़ व ईशाअत और आपसी भाईचारा का माहोल तय्यार करने में कलीदी किरदार अदा किया हे। बेशतर सुफीयाए किराम ने अपनी ख़िदमात के लिए अेसे मक़ामात को मुनतख़ब किया जहा ईस्लाम नामुस रहा हे। उन्होंने अपने अख़लाक़, किरदार और तरज़े अमल से अपने और गैर हर एक को मुतास्सीर किया हे। चुन्नाचे इस का असर ये हुवा के तमाम मज़ाहीब के मानने वाले उनके अक़ीदत मंद रहे और आज भी उन से अक़ीदत रख़ते हैं। अेसे ही अज़ीमुल मरतबत शख़सीयात में सिलसिलए रिफाईया के सुफीयाए किराम भी शामिल है जीन्होंने तमाम मज़ाहीब के मानने वालों को अपनी मोहब्बतों का असीर कर लीया। सिलसिलए रिफाईया के अेसे ही मोअज़्ज़ीज़ बुर्ज़ुगाने दीन में से मशहूर व माअरुफ बुर्ज़ुग हज़रत मौलाना सय्यद रज़ियुद्दीन मोहमंद इब्राहिम अल माअरुफ लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ की ज़ाते करीमाना हे। आप एक ख़ुदा तरस, नेक सीरत, मुत्तक़ी और सीफाते अवलीया से मुतस्सिफ बुर्ज़ुग थे, आप मशाईख़े रिफाईया में बड़े साहेबे करामत बुर्ज़ुग थे और हिन्दुस्तान मे सिलसिलए रिफाईया कि ईशाअत के सिलसिले में बड़ा अहम किरदार अदा किया हे।
जद्दे अमजद
आपके अजदाद में हज़रत अश्शैख़ आरीफुल आलेमुल कामेलुल फाज़ीलुल मोहक़्क़िक़ अश्शरीफ अस्सय्यद नजमुद्दीन अल माअरूफ अब्दुर्रहीम रिदवानुल्लाह हसनी हुसैनी मुसवी शाफई रिफाई मदनी सुरती رحمتہ اللہ علیہ है जिनकी विलादत 20, जमादील अव्वल 1070 हिजरी, बरोज़ पिर ब वक़ते असर मदीना शरीफ में हुई। आप हज़रत शैख़ सय्यद शाह सुल्तान नजीबुद्दीन अब्दुर्रहीम मेहबुबुल्लाह हसनी हुसैनी मुसवी शाफई रिफाई अहमदाबादी رحمتہ اللہ علیہ ( वफात : 813 हिजरी ) की वफात के 309 साल के बाद हुज़ूरे अकरम صلی اللہ علیہ وسلم की बशारत व हुक्म से अपने अफराद व ख़ानदान के साथ मदीना शरीफ से हिजरत फरमाकर ब उमर 52 साल ब मुताबिक़ 25 रज्जबुल मुरज्जब 1122 हिजरी में हिन्दुस्तान के तारीख़ी शहर बाबुल मक्का सुरत गुजरात तशरीफ लाए और हमेशा के लिए सुकुनत पज़ीर हुवे।
वफात : सुरत बंदरगाह में 10 साल ख़िदमते ख़ल्क़ और सिलसिलए रिफाईया कि रुहानी व बातीनी तालीमात की तरवीज व ईशाअत के बाद 62 साल की उम्र में 20 जमादील अव्वल 1132 हिजरी बरोज़ पिर ब वक़ते असर विसाल हुवा। और 22 जमादील अव्वल 1132 हिजरी बुध के दीन आपकी तदफीन अमल में आई। आपका मज़ारे मुबारक ख़ानक़ाहे रिफाईया बिरीया भागल सुरत गुजरात मे ज़ियारत गाहे ख़ास व आम हे। (तारीख़े मशाईख़े रिफाईया )
वालीदे गीरामी
आप के वालीद माजिद का नामे मुबारक हज़रत मौलाना सय्यद नुरुद्दीन हाशीम फैज़ुल्लाह हसनी हुसैनी मुसवी शाफई रिफाई رحمتہ اللہ علیہ था। आपकी विलादत 1176 हिजरी सुरत मे हुई /और वफात : 1244 हिजरी मे हुई, मज़ार मुबारक ख़ानक़ाहे रिफाईया रिफाई बाग बिरीया भागल सुरत में हे। आप के ईल्मी और रुहानी मरातीब बहुत बुलनंद थे, आप सिलसिलए रिफाईया के अज़ीम सुफी तहज्जुद गुज़ार आलीमे दीन थे के उन का हर फेअल व अमल सुन्नत के मुताबिक़ और तरीक़त के मवाफीक़ होता था। दिन से रग़बत और दुन्या दारी से बेज़ार रहते थे कभी आपने दुन्या जमा करने की फिक्र न की बल्के हमेशा क़ोम की फिक्र में लगे रहते थे हर वक़त ज़िक्रे ईलाहि से रतबुल लेसान रहते थे, बुग़्ज़ व ईनाद से दील को पाक रख़ते थे, जिधर चले जाते लोग परवाने की तरह आप पर फिदा हो जाते थे आपके अक़िदत मंदो की एक बड़ी तादाद थी। आपके 3 साहबज़ादे है। (1) हज़रत मौलाना सय्यद फख़रुद्दीन ग़ुलाम हुसैन अल माअरुफ अमीर मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ ( विलादत : 1199 हिजरी / वफात : 1262 हिजरी) ( 2) हज़रत मौलाना सय्यद रज़ियुद्दीन मोहमंद इब्राहिम अल माअरुफ लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ ( जिनका तज़केरा मज़मुन में मक़सुद हे )।
3) हज़रत मौलाना सय्यद क़ुत्बुद्दीन अहमद अल माअरुफ बादशाह मियां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ
वफात : 1263 हिजरी ( तारीख़े मशाईख़े रिफाईया )
विलादत
हज़रत लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ की पैदाईश के सन में ईख़्तेलाफ हे,”हक़ीक़तुस्सुरत गुलदस्तए सुलहाए सुरत” के मुसन्निफ शैख़ रज़ियुद्दीन अहमद बख्शीश उर्फ बख़्शु मीयां सफा : 43 पर लिख़ते हे “ईनकी विलादत 1207 हिजरी मे हुई थी”। और “तारीख़े मशाईख़े रिफाईया” के मुताबिक़ 1206 हिजरी लिख़ा हे। (सफा : 18)
मक़ामे पैदाईश हिन्दुस्तान के मशहूर शहर गुजरात की तारीख़ी बंदरगाह बाबुल मक्का सुरत में हुई।
आपका शजरए नसब
आपका शजरए नसब (19) वास्तों से बानी सिलसिलए रिफाईया हज़रत सय्यद अहमद कबीर रिफाई رحمتہ اللہ علیہ तक पहुंचता हे और वहां से ईमाम मुसा काज़ीम رضی اللہ عنہ और सय्यदना ईमामे हुसैनرضی اللہ عنہ के तवस्सुत से नबी ए करीम صلی اللہ علیہ وسلم तक पहुंचता हे।
आपका शजरए तरीक़त
आपका शजरए तरीक़त भी (19) वास्तों से बानी सिलसिलए रिफाईया हज़रत सय्यद अहमद कबीर रिफाई رحمتہ اللہ علیہ तक पहुंचता हे और वहां से सिलसिलतुज़्ज़हब ईमामुल औलीया हज़रत अली,,, तक पहुंचता हे।
( तारीख़े मशाईख़े रिफाईया )
तालीम व तरबीयत व बैअत व ख़िलाफत
तसव्वुफ व सुलुक, रुहानीयत व तरीक़त और ईल्म वह फन का जो माहोल आपको मीला उसकी बदोलत अपने शउर के आगाज़ से ही तज़कीयाए नफस, मुजाहेदाए बातीन, तहारते क़ल्ब ल नज़र और ज़िक्र व फिक्र की तरफ माईल थे। अपनी ख़ानदानी रिवायत के मुताबिक़ वालीद माजिद قدس سرہ से ताअलीम व तरबीयत पाई और उन्हीं के दस्ते अक़दस पर सिलसिलए रिफाईया में बैअत हो गए और साथ ही ईजाज़त व ख़िलाफत से सरफराज़ हुवे।
बड़ौदा में सिलसिलए रिफाईया की आमद और मुर्ग़ की मशहूर करामत
बड़ौदा में सिलसिलए रिफाईया की आमद का सबब कुछ इस तरह हुवा के हज़रत सय्यद फख़रुद्दीन गुलाम हुसैन अल माअरुफ अमीर मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ हज़रत सय्यद रज़ियुद्दीन मोहमंद इब्राहिम अल माअरुफ लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ और हज़रत सय्यद क़ुत्बुद्दीन अहमद अल माअरुफ बादशाह मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ अपने मुरीदीन व मोअतक़ेदीन के साथ एक मरतबा दक्कन हैदराबाद दौरे पर गए हुए थे, वहां रातीबे रिफाईया ( सिलसिलए आलीया रिफाईया में ज़िक्रे ईलाहि की मेहफील को मेहफीले रातीब कहा जाता हे। रातीबे रिफाईया की मेहफील में ज़िक्रे ईलाहि से मग़लुब होकर वजदानी केफीयत में मुरीदीन व वाबीस्तगाने सिलसिला फनाईय्यत का मुज़ाहेरा करते हे ईस को ज़र्बाते रिफाईया कहा जाता हे ) का अज़ीमुश्शान जल्सा मुनअकीद हुवा, उस वक़त हज़रत ने एक मुरीद की गरदन पर ज़र्ब की और गरदन को जिस्म से अलग कर दिया और फिर उसी गरदन को चंद लम्हों में बिस्मील्लाह शरीफ और मख़सुस अवरादे रिफाई पढ़ते हुवे जिस्म से जोड दिया, उस वक़त हैदराबाद दक्कन में आसीफजाही हुकुमत का दौर दौरा था और निज़ामे दक्कन औलमा व मशाएख़ीन के बड़े क़द्ददान बादशाह थे और कयुं न हो जबके उनकी तालिम व तरबीयत एक आरीफ बिल्लाह हुज़ूर शैख़ुल ईस्लाम शाह मौहमंद अनवारुल्लाह फारुकी رحمتہ اللہ علیہ बानी जामिआ निज़ामीया के दस्ते हक़ परस्त पर हुई तब हि तो आप औलमा व मशाएख़ के बड़े क़द्ददान थे। ये वाक़ेआ उन्हीं के सामने पेश आया और शाहे वक़त ने ख़ुद अपनी आख़ो से इस करामत को देखा। शाहे दक्कन पेहले हि से आपसे अेतेक़ाद रख़ते थे लेकिन इस वाक़ेआ के बाद उनकी अक़ीदत और ज़्यादा हो गई, शाहे दक्कन ने इस वाक़ेआ को बड़ौदा के महाराजा गायकवाड ख़ंड़ेराव को सुनाया और अपना देखा सबकुछ महाराजा के सामने बयान कर दीया। निज़ाम हैदराबादी और महाराजा ख़ंड़ेराव बड़ौदवी का आपस में बड़ा गेहरा दोस्ताना ताल्लुक़ था।
जब ईस वाक़ेआ को ख़ंड़ेराव महाराजा ने सुना फिर तेहक़ीक़ की तो मालुम हुवा के ये करामत ख़ानदाने रिफाईया के बुर्ज़ुग हज़रत लाला मीयां रिफाई से सादीर हुई। शाहे दक्कन ने महाराजा के सामने आपके तमाम फज़्ल व कमाल और हुस्न व जमाल का ज़िक्र किया जिसको सुनकर महाराजा बड़ौदवी को भी आपसे अक़ीदत हो गई और वोह आपका गरवीदा हो गया और बड़ौदा तशरीफ आवरी की आपको दावत दी, आप महाराजा की दावत पर अपने दोनों भाईयों और मुरीदीन व ख़ुल्फा के साथ सुरत से बड़ौदा तशरीफ़ लाए और इस तरह से बड़ौदा में सिलसिलए रिफाईया की आमद हुई।
खाए हुवे मुर्ग़ को ज़िंदा फरमाया
आपकी बड़ौदा आमद के बाद महाराजाने खुद अपने महल में शबे जुम्आ एक जल्सए रातिबे रिफाईया का मुनअक़ीद कीया और महाराजा खुद इस जल्से में हाज़िर हुवा। उस वक़त महाराजा ने अर्ज़ की के हुज़ूर आज मौक़ा हे आप हमको ज़रबाते रिफाईया दिखा दे लेकिन अगर आप किसी इन्सान पर ज़र्ब करेंगे तो में ताब नहीं ला सकुंगा कयुं के मेरा दील बहुत कमज़ोर हे तो मेरी ख़्वाहिश ये हे के आप कीसी जानवर पर ज़र्ब करे ताके में देख सकु दादा हुज़ूर ने फरमाया तुम्हारी मुराद ज़रुर पुरी होगी ईन्शा अल्लाह, दादा हुज़ूर ने फरमाया कोई जानवर ले आवो तो महाराजा ने एक बहुत बड़ा मुर्गा मंगवाया, आपके इस हल्क़ए रातिबे रिफाईया को देखने के लिए महाराजा ने पुरे बड़ौदा शहर में अेलान करवा दीया था और जगेह जगेह से कसीर ताअदाद में लोग जमा हो गए थे, बाद नमाज़े इशा जब रातिबे रिफाईया का जल्सा शुरु हुवा तो मुरीदीन हज़रते रिफाई رحمتہ اللہ علیہ की शान में क़सीदे पढ़ने लगे फिर आपने बादशाह के मंगाए हुवे मुर्ग़ को बीस्मील्लाह पढ़हकर ज़ुब्हे किया और पकाकर सबको खिला दिया। जब अेहले मेहफिल खाकर फारीग़ हो गए तब दादा हुज़ूर ने मुर्ग़ के तमाम हड्डीयों और परों को एकजा करने का हुक्म दिया जब हड्डियों और परों को जमाकर दीया गया तो दादा हुज़ूर ने फौरन उस पर अपनी चादर मुबारक ड़ाल दी ये सारा वाक़ेआ तमाम हाज़ेरीन के सामने हो रहा था और हल्क़ए रातिबे रिफाईया अपनी पुरी रुहानीयत के साथ जारी था के तभी हज़रत सय्यद रज़ियुद्दीन मोहमंद इब्राहिम अल माअरुफ लाला मीयां रिफाई वज्द् में आ गए और ख़ड़े होकर अपने बड़े भाई हज़रत सय्यद फख़रुद्दीन ग़ुलाम हुसैन अल माअरुफ अमीर मीयां रिफाई की दस्त बोसी की और दुआ के लिए हाथ उठाए के अय परवरदिगार ! आज तेरी वहदानियत का मुनकर मेरे सामने बेठा हे, अय मेरे रब तु ईस्लाम की सदाक़त व हक़्क़ानीयत को वाज़ेअ फरमादे और अपने हुकम से इस मुर्ग़ को ज़िंदा कर दे, इसके बाद आपने उन हड्डियों (जिस पर आपने अपनी चादर ड़ाली थी) की तरफ देखते हुवे “क़ुम ब इज़नील्लाह” कहा इतना कहना था के हड्डियों व परों में जुम्बीश होने लगी और अबतक जो मुर्ग़ मुर्दा पड़ा था बान्ग देते हुवे उठ ख़ड़ा हुवा फ़िर जब आपने अपनी चादर मुबारक हटाई तो उस मुर्ग़ की एक ही टांग थी, जब राजा ने ये मंज़र देखा तो अर्ज़ गुज़ार हुवा हुज़ूर मे ने तो आपको दो टांग वाला मुर्ग़ पेश किया था फ़िर ये एक टांग वाला कैसे हो गया तो दादा हुज़ूर ने फरमाया इस की एक टांग आपके वज़ीर के पास हे जो उन्होंने खाने के बाद छुपा लिया था, फौरन वज़ीर को बुलाया गया और उससे पुछताछ की गई तो वज़ीर अपने किए पर बहुत शर्मिन्दा हुवा और आपकी बारगाह मे माफी तलब करते हुवे केहने लगा हां ये बात सच हे, में देखना चाहता था के ये जो मुर्ग़ इन्होंने ज़िंदा फरमाया ये वही मुर्ग़ हे या कोई और फ़िर दादा हुज़ूर ने वज़ीर को मुआफ फरमा दिया और उस से दुसरी टांग लेकर बिस्मिल्लाह पढ़हकर जोड दिया।
सरकार ने जिलाया एक मुर्ग़ ज़ुब्हे कर के
क्या मर्दे बा ख़ुदा हे लाला मीयां रिफाई
ये आप हज़रत लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ की शान हे के जानवर पर ज़र्ब की, आजतक सिलसिलए रिफाईया में किसीने भी जानवर पर ज़र्ब नहीं की थी। तमाम अेहले मजलीस महवे हैरत थे, हर एक ने आपकी करामत देखी, महाराजा ने जब ये देखा तो आपके आगे सरको झुका दिया आपका मोअतक़ीद हो गया और ईस्लाम का गरवीदा हो गया फ़िर अपने ख़्ज़ान्ची को एक ख़तीर रक़म बतौर नज़राना आप के क़दमों में पेश करने का हुक्म दिया, उस ज़माने से आजतक नज़राने की रक़म 746 रुपीये ख़ानक़ाहे रिफाईया के सज्जादा नशीनों को हर साल उर्से रिफाई के मौक़े पर मीलती आई हे। वोह रक़म आज भी सज्जादा नशीन ख़ानक़ाहे रिफाईया हज़रत सय्यद शाह कमालुद्दीन मज़हरुल्लाह रिफाई साहब को मीलती हे।
इस वाक़ेआ से भी हल्क़ए रातिबे रिफाईया का सबुत मीलता हे, कयुं के ये रातिबे रिफाईया कि बरकत थी के मुर्ग़ ज़िंदा हो गया, जिसका मुशाहेदा एक ग़ैर मुस्लिम राजा ने किया और ईस्लाम की अज़मत के सामने सर ज़ुका दिया। इस की तफसीलात खुद राजा के महल में मौजुद एक तारीख़ी दस्तावेज़ ( ताम्र पत्र ) में मौजुद हे।
हज़रत ईमाम रिफाई की रुहानी और अख़लाकी तालीमात का गायकवाड़ हुक्मरानों पर बड़ा असर हुवा, और उन्होंने ज़मीन का एक बड़ा ख़ित्ता वक़फ कर दिया जिस पर फिल वक़्त ख़ानक़ाहे रिफाईया वाक़ेअ हे।
मज़कुरा वाक़ेआ का अतराफ व ईकनाफ में खुब खुब शोहरा हुवा, राजा चुं के सुफी इज़म से गेहरा लगाव रख़ता था, इस वाक़ेआ के बाद उसकी वाबिस्तगी में और भी इज़ाफा हो गया, और अक़ीदत का इज़हार करते हुवे अपनी सल्तनत से वसीअ व अरीज़ ज़मीन पर फ़ैला हुवा (22) गांव नज़राने के तोर पर पैश किया लेकिन आप رحمتہ اللہ علیہ ने उसे क़ुबुल करने से अेएराज़ किया और फरमाया के हम फक़ीर और सुफी मन्श लोग है ये लेकर क्या करेंगे, बादशाह फ़ीरसे अर्ज़ गुज़ार हुवा और क़ुबुल करने के लिए ईसरार करने लगा फ़िर भी आपने लेने से मना फरमाया,बाद अज़ां बादशाह ने ये गुज़ारीश की के आप हमारी इतनी सी गुज़ारिश क़ुबुल फरमा लें के आप हमारे शहर बड़ौदा को छोड़कर न जाए यहीं पर आप क़याम फरमाकर अपने फैज़ को आम करें, हज़रत सय्यद फख़रुद्दीन ग़ुलाम हुसैन अल माअरुफ अमीर मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ ने उसकी बात रख़ली और क़याम करने के लिए राज़ी हो गए फ़िर बादशाह ने अपने महल के सामने ख़ानक़ाह की तामीर करवाई और ईबादत के लिए मस्जिद भी बनवाई। और आपके भाई सय्यद क़ुत्बुद्दीन अहमद अल माअरुफ बादशाह मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ (पीरान पट्टन ) पट्टन तशरीफ ले गए, वहां भी लोग कसीर ताअदाद में हल्क़ए ईरादत में दाख़िल होकर सिलसिलए रिफाईया के फैज़ान से मालामाल होने लगे।
और आपके बिरादरे असग़र हज़रत मौलाना सय्यद रज़ियुद्दीन मोहमंद इब्राहिम अल माअरुफ लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ अपने आबाई वतन सुरत तशरीफ ले गए, वहां भी लोग बड़ी ताआदाद में आपके दस्ते हक़ परस्त पर बैअत करके सिलसिले के फैज़ान से मुर्शरफ होने लगे। आपके सुरत तशरीफ लाने के बाद अरसए दराज़ तक सुरत में रुश्द व हिदायत का सिलसिला जारी रहा और हिन्दुस्तान में ये सिलसिला आपके ज़रीए ख़ुब फ़ैला और मक़बुल हुवा।
जिन्नात के उस्ताद
हज़रत लाला मीयां रिफाई رحمتہ اللہ علیہ का ईल्मी व रुहानी मक़ाम बड़ा बुंलन्द व बाला हे। आपके फैज़ाने ईल्मी से एक ज़माना मुस्तफीज़ होता रहा हे। आपने पुरी ज़िंदगी दावत व तबलीग़ में सर्फ कर दी, ख़ुदा दाद सलाहिय्यतों को बरुए कार लाकर हज़ारों बे राह रवों को राहे रास्त पर लाए और बातील क़ुव्वतों को कीफ्र किरदार तक पहुंचाने मे कोई कसर न छोड़ी, ईल्मी जाह व जलाल का आलम ये था के इन्सान तो इन्सान जिन्नात भी आपके शार्गीद बन्ने मे फख़्रे मेहसुस करते थे, जब आप ख़ानक़ाहे रिफाईया की रिफाई हवेली सय्यद वाड़ा सुरत में मुक़ीम थे तो आपके हुजरए मुबारका से बाहर दर्स की आवाज़ आती थी लेकिन जब दरवाज़ा ख़ोलकर देखा जाता तो आपके सिवा कोई भी नज़र न आते फिर माअलुम हुवा के आप जिन्नातों को भी दर्स देते थे।
विसाल
आपका विसाल मुबारक 84 साल की उम्र में 14/ ज़िल क़ाअदा 1290 हिजरी ख़ानक़ाहे रिफाईया रिफाई हवेली सुरत में हुवा और वहीं आपका मज़ार मुबारक आज भी मरजए ख़लाएक़ बना हुवा हे।
आपका उर्स मुबारक हर साल 13/ ज़िल क़ाअदा को ख़ानक़ाहे रिफाईया बड़ौदा शरीफ में और 14/ज़िल क़ाअदा को ख़ानक़ाहे रिफाईया रिफाई हवेली सय्यद वाड़ा, सुरत जहां आपका मज़ार पुर नूर वाक़ेअ हे बड़े हि अक़ीदत व अेहतराम से मनाया जाता हे।
अज़ क़लम : सय्यद हिसामुद्दीन ईब्ने सय्यद जमालुद्दीन रिफाई ख़ानक़ाहे रिफाईया बड़ौदा, गुजरात
9978344822
Massallah . Subhanalah . Howal kabiro