सामाजिक

उस्ताद के अदब के फ़वाईद

हुसूले इल्म के बुन्यादी अरकान में से एक अहम रुक्न उस्ताद है , तहसीले इल्म में जिस तरह दर्सगाह व किताब की अहमियत है उसी तरह हुसूले इल्म में उस्ताद का अदब व एहतिराम मर्कज़ी हैसियत का हामिल है ।
उस्ताद की ताज़ीम व एहतिराम शागिर्द पर लाज़िम है कि उस्ताद की ताज़ीम करना भी इल्म ही की ताज़ीम है और अदब के बग़ैर इल्म तो शायद हासिल हो जाए मगर फ़ैज़ाने इल्म से मह़रूमी होती है इसे यूँ समझिए :

” बा अदब बा नसीब , बे अदब बे नसीब “

उस्ताद के अदब के मुख़्तलिफ़ दीनी और दुन्यावी फ़वाईद तालिबे इल्म को हासिल होते हैं जिन में से बाज़ ये हैं :
{1} इमाम बुरहानुद्दीन ज़र नोजी رَحْمَۃُ اللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِ फ़रमाते हैं : एक तालिबे इल्म उस वक़्त तक इल्म हासिल नहीं कर सकता और न ही उस से नफ़्अ उठा सकता है जब तक कि वह इल्म , अहले इल्म और अपने उस्ताद की ताज़ीम व तौक़ीर न करता हो ।

{2} इमाम फ़ख़्रूद्दीन अर्सा बंदी رَحْمَۃُ اللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِ मज़्द शहर में रईसुल आईमा के मक़ाम पर फ़ाईज़ थे और सुल्ताने वक़्त आपका बेहद अदब व एहतिराम किया करता था । आप फ़रमाया करते थे कि मुझे ये मंसब अपने उस्ताद की ख़िदमत व अदब करने की वजह से मिला है ।
(राहे इल्म , सफा : 35 ता 38)

{3} सलाहियते फ़िक्र व समझ में इज़ाफ़ा होना

{4} अदब के ज़रिए उस्ताद के दिल को ख़ुश करके सवाब हासिल करना , हदीसे पाक में है : अल्लाह पाक के फ़राईज़ के बाद सब आमाल से ज़्यादा प्यारा अमल मुसलमान का दिल ख़ुश करना है ।
(मोजम अवसत , 6/37 , हदीस : 7911)

{5} अदब करने वालों को असातिज़ा किराम दिल से दुआएं देते हैं और बुज़ुर्गों की दुआ से इंसान को बड़ी आला नेमतें हासिल होती हैं ।
(सिरातिल जिनान , 8/281)

{6} अदब करने वाले को नेमतें हासिल होती हैं और वह ज़वाले नेमत से बचता है क्योंकि जिस ने जो कुछ पाया अदब व एहतिराम करने के सबब ही से पाया और जिसने जो कुछ खोया वह अदब व एहतिराम न करने के सबब ही खोया ।
(तालीमुल मुतलिम, सफा : 35)

{7} उस्ताद के अदब से इल्म की राहें आसान हो जाती हैं ।
(इल्म व उलमा की अहमियत , सफा : 108)।
वालिदैन की भी ज़िम्मेदारी है कि अपनी औलाद को इल्म व अहले इल्म का अदब सिखाएं ।
हज़रत इब्ने उमर رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने एक शख़्स से फ़रमाया : अपने बेटे को अदब सिखाओ बेशक तुम से तुम्हारे बेटे के बारे में पूछा जाएगा और जो तुम ने उसे सिखाया और तुम्हारी फ़रमा बरदारी के बारे में उस लड़के से सुवाल किया जाएगा ।
(शोअबुल ईमान , 6/400 , हदीस : 8462)

अदब का बयान

एक दाना का क़ौल है कि अक़्ल को कुछ न कुछ अदब की ज़रूरत होती है जैसे बदन को क़ुव्वत के हुसूल के लिए खाने की ज़रूरत होती है ।
हज़रते सय्यिदुना अलीयुल मुर्तज़ा کَرَّمَ اللہُ تَعَالٰی وَجْہَہُ الْکَرِیْم का फ़रमान है :
अदब हाजत के वक़्त ख़ज़ाना , मुरव्वत पर मददगार , मजलिस में रफ़ीक़ और तन्हाई में उन्स पहुंचाने वाला है ।
इसके ज़रिये कमज़ोर दिलों को आबाद किया जाता है , मुर्दा अक़्लों को ज़िंदगी मिलती है और तलब करने वाले इसी के ज़रिए अपनी मुरादों को पाते हैं ।
(दीन व दुनिया की अनोखी बातें , जि0 1 , सफा 81)
मंक़ूल है कि अक़्ल बिला अदब ऐसे है जैसे बहादुर इंसान असलह़े के बग़ैर ।

अदब का बेटा

मंक़ूल है कि एक शख़्स ने मामून रशीद के सामने बहुत अच्छा कलाम किया तो मामून ने पूछा : तुम किसके बेटे हो ?
उसने जवाब दिया ; ऐ अमीरूल मोमिनीन ! मैं अदब का बेटा हूँ । मामून रशीद ने कहा : तुम ने बहुत अच्छे नसब की तरफ़ निस्बत इख़्तियार की है । इसीलिए कहा जाता है कि आदमी की शनाख़्त उस के काम से होती है न ख़ानदान से ।
शायर कहता है:

كُن اِبنَ مَن شِئتَ واِكتَسِب أَدَباً
يُغنيكَ مَحمُودُهُ عَنِ النَسَبِ
فَلَيسَ يُغني الحَسيبُ نِسبَتَهُ
بِلا لِسانٍ لَهُ وَلا أَدَبِ
إِنَّ الفَتى مَن يُقولُ ها أَنا ذا
لَيسَ الفَتى مَن يُقولُ كانَ أَبي

तर्जमा : तुम चाहे जिस के बेटे भी हो अदब हासिल करो , इसकी अच्छाई तुम्हें नसब से बे नियाज़ कर देगी । मर्द वोह है जो कहे कि मैं यह हूँ , वह नहीं जो कहे कि मेरा बाप ऐसा था ।
(दीन व दुनिया की अनोखी बातें , जि0 1 , सफा 81-82)

अल्लाह पाक हमें अपने वालिदैन , असातिज़ा और पीर व मुर्शिद का फ़रमा बरदार और बा अदब बनाएँ ।

लेखक: मोहम्मद उमैर अत्तारी
मुदरिस जामेअतुल मदीना फ़ैज़ाने ग़ौसे पाक, कराची

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