धार्मिक सामाजिक

जवान लड़के लड़कियों की शादी में देर करना

लेखक: मह़मूद रज़ा क़ादरी, गोरखपुर

आजकल जवान लड़के लड़कियों को घर में बिठाये रखना और उनकी शादी में ताख़ीर करना आम हो गया है।

इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। हदीस पाक में है। रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं।

जिसकी लड़की 12 बरस की उम्र को पहुंचे जाए और वह उसका निकाह न करे फिर वह लड़की गुनाह में मुब्तिला हो गई तो वह गुनाह उस शख्स पर है। जिसने उनकी निकाह न कि ..ऐसी ही हदीस लड़कों के बारे में भी आई है। (मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 271)

आजकल की फ़िज़ूल रस्मों रिवाज और बेजाह खर्चों ने भी शादियों को मुश्किल कर दिया है जिसकी वजह से बहुत सी जवान लड़कियां अपने घरों में बैठी हुईं हैं। और लड़के मालदारों की लड़कियों की तलाश में बूढ़े हुए जा रहे हैं।*
इन खर्चों पर कन्ट्रोल करने के लिए जगह जगह तहरीकें चलाने और तन्ज़ीमें बनाने की जरूरत है। चाहे वह अपनी अपनी बिरादरी की सतह पर हो या गैर बिरादरी पर हो काम किया जाये तो कोई हर्ज नहीं।
भाईयो ये दौर (वक्त) काम करने का है सिर्फ बातें मिलाने या नारे लगाने और मुशाएरे सुनने से कुछ हासिल नहीं होगा। शादी ब्याह को कम से कम खर्च से करने का माहौल बनाओ ताकि ज़्यादा से ज़्यादा मर्दं और औरतें शादी शुदा रहें।

कुछ लोग तो आला तालीम हासिल कराने के लिए लड़कियों की उम्र ज़्यादा कर देते हैं और उन्हें गैर शादी शुदा रहने पर मजबूर कर देते हैं। यह भी निरी हिमाकत और बेवकूफी है।

आज मुसलमानों में कुछ बदमज़हब और बातिल फ़िरके जवान लड़कियों की आला तालीम के लिए मदारिस और स्कूल खोलने में बहुत कोशिश कर रहे हैं। उनका मकसद अपने बातिल और मखसूस गैर इस्लामी अकाइद मुसलमानों में फैलाने और घरों में पहुँचाने के अलावा और कुछ नहीं है। और इधर लोगों में आजकल औलाद से मोहब्बत इस कद्र बढ़ गई है। कि हर शख्स इस कोशिश में है कि मेरी लड़की और मेरा लड़का पता नहीं क्या क्या बन जाये और आला तालीम के नशे सवार हैं। और बनता तो कोई कुछ नहीं लेकिन अक्सर बुरे दिन देखने को मिलते हैं। लड़के ज़्यादा पढ़कर बाप बन रहे हैं और लड़कियाँ माँ बन रही

हो सकता है कि हमारी इन बातों से कुछ लोगों को इख्तिलाफ हो मगर हमारा मशवरा यही है। कि लड़कियों को आला तालीम से बाज़ रखा जाये खासकर जब कि यह तालीम शादी की राह में रुकावट हो और पढ़ने पढ़ाने के चक्कर में अधेड़ व शर्मसार कर दिया जाता हो और ख़ासकर गरीब तबके के लोगों में क्यूंकि उनके लिए पढ़ी लिखी लड़कियाँ बोझ बन जाती हैं।
क्यूंकि उनके लिए शौहर भी ए क्लास और आला घर के होना चाहिए और वह मिल नहीं पाते और कोई मिलता भी है। तो वह महज़ दहेज़ में मारूती कार या मोटर साइकिल का मांगता है। बल्कि बारात से पहले एक दो लाख का सवाल तक करता है।

हिन्दुस्तान गवर्नमेंट जो बच्चों को ऊंची तालीम दिलाने पर ज़ोर दे रही है, उसके लिए मेरा मशवरा है कि वह तालीम याफ्ता बच्चों की नौकरी व मुलाजि़मत की जिम्मेदारी ले या उनके वजीफ़े मुतय्यन करे। खाली पढ़ा पढ़ा कर छोड़ देना, न घर का रखा न बाहर का, न खेत का न दफ़्तर का यह गरीबों के साथ ज़ुल्म है और समाज की बरबादी है। (गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफ़हा,83,84,85)

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