धार्मिक

रोज़ा सिर्फ़ भूखा प्यासा रहने का नाम नहीं है

लेखक: मुफ्ती रौशन रज़ा मिस्बाही अज़हरी

रमज़ान शरीफ का पवित्र महिना शुरु हो चुका है और दो साल बाद इस वर्ष मुस्लमान खुल कर मस्जिदों मे जा कर अल्लाह की इबादत कर रहे और तरावीह की नमाज़ पढ़ रहे हैं l रमज़ान शरीफ के महिने मे हर नेक काम का बदला बढ़ा कर दिया जाता है तो हमे इस महीने मे ज्यादा से ज्यादा पुन्य के काम करने चाहिए.
रोजा अल्‍लाह की इबादत का एक तरीका है।रोजा का अर्थ सिर्फ भूखा-प्‍यासा रहना नहीं हैl बल्कि रोजा के दौरान हमको खाने-पीने से तो बचना ही है लेकिन पेट के अलावा हमारे पूरे बदन का रोजा होता है, जैसे हमारी आंख का रोजा, जुबान का रोजा, कान का रोजा, हाथ का रोजा, पांव का रोजा आदि।
आंख के रोजे से मतलब यह है कि रोजा के दौरान आंख किसी पराई औरत को न देखें, नाच-गाना न देखें (क्‍योंकि उसमें भी पराई औरतें नाचती-गाती) हैं, किसी गलत चीज पर नज़र न डाले ।जुबान का रोजा मतलब हमारी जुबान से गाली न निकले, झूठ न निकले, किसी की पीठ पीछे बुराई न निकले, चुगली न हो, दो लोगो के बीच लड़ाने वाली बात न निकले।कान का रोजा मतलब अगर कोई किसी की बुराई कर रहा हो तो हमारे कान उसको मजा लेकर न सुने, किसी के राज न सुने, संगीत न सुने, अश्लीलता से भरी संगीत और गाने ना सुने ।हाथ का रोजा मतलब हमारे हाथ किसी पर जुल्‍म के लिए नहीं उठे, हमारे हाथों से किसी को तकलीफ न पहुंचे।

पांव का रोजा मतलब हमारे पांव बुरे कामों की तरफ चलकर न जाएं। रोजे में खाने-पीने से बचने के अलावा सभी बुराइयों से बचना जरूरी है तभी हम रोजे के असली उद्देश्‍य तक पहुंच पाएंगे।
दूसरे खलीफा अमीर ऊल मोमिन हज़रत फारूक ए आज़म रिवायत करते हैं कि हमारे नबी से पूछा गया कि रोज़े मे सब से अच्छा अम्ल क्या है तो आप ने जवाब दिया :अल्लाह की हराम की हुई चीजों से खुद को बचाना l ये शब्द तो छोटा है मगर इस मे कितनी गहराई है की जितनी भी गलत चीज़ है सब से परहेज करना हमारा कर्तव्य है. और जो भी पुन्य के काम हैं सब को करना ताकि अल्लाह खुश हो जाए.
ऐसा रोजा की अल्‍लाह की नजर में एहमियत (विशिष्‍ठता) रखता है। अल्‍लाह हम सबको रोजे के दौरान सभी तरह के गुनाहों से बचाए और हमारे टूट-फूटे रोजों को कुबूल फरमाए.

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