धार्मिक

क्या हर मुसलमान जन्नत में जाएगा?

आजकल मुस्लिमों की एक आम सोच ये बनी हुई है कि हर मुसलमान जन्नत में जाएगा, जन्नत तो उनके नाम पर रजिस्टर्ड है, उन्हें जन्नत में जाना ही जाना है। ये बात क़ुरआन और हदीस की रोशनी में कहां तक सही है, आज हम इस पर गौर ओ फ़िक्र करेंगे?

मैं ज़्यादा तफसील में अपने पास से कोई बात नहीं करूंगा, मैं क़ुरआन और हदीस से सिर्फ हवाले पेश करूंगा, और आईना दिखाता चला जाऊंगा, कि कौन कहां जा रहा है? लेकिन उससे पहले हम एक बुनियादी चीज़ समझ लें, कि क़ुरआन जब भी ईमान की बात करता है, तो साथ में अमाले सालेह की बात को लाता है, वो हमारे ईमान का रिफ्लेक्शन होते हैं, जो ईमान हमारे अंदर छिपा होता है और हमारे आमाल से ज़ाहिर होता है, तो सब से पहली बात तो ये कि क़ुरआन के हिसाब से जन्नत में जाने के लिए अमली ज़िन्दगी मायने रखती है। 

ऐसा नहीं है कि हम एक मुस्लिम के घर में पैदा हो गए तो अल्लाह ने हमें पैदा ही जन्नत के लिए कर दिया, ये बाकी इंसानों पर अल्लाह की तरफ से ज़ुल्म हो जाएगा, अल्लाह ने सब को अलग अलग इम्तेहान में डाला है, लेकिन इम्तेहान सब का होगा। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम घर में पैदा होने वाले पैदाइशी तौर पर जन्नत के लिए पैदा किए गए हैं। और इससे भी आगे बढ़ कर कुछ लोग कहते हैं कि हम तो एक ना एक दिन सज़ा भुगत कर जन्नत में जाएंगे ही जाएंगे, क्या आपने अल्लाह से कोई वादा किया है, ये मैं नहीं कह रहा हूं, ये क़ुरआन कहता है:
और वे कहते हैं: हमको दोज़ख़ की आग नहीं छुएगी मगर गिनती के चंद दिन, कहोः क्या तुमने अल्लाह के पास से कोई अहद ले लिया है कि अल्लाह अपने अहद के ख़िलाफ़ नहीं करेगा, या अल्लाह के ऊपर ऐसी बात कहते हो जो तुम नहीं जानते।(2:80)

क़ुरआन ने अपना मिजाज़ वाज़ह कर दिया, लेकिन अभी भी कुछ लोग कह सकते हैं कि ये आयत उन के लिए थी जो पहले की कौम थी, तो ये जान लें कि अल्लाह के उसूल कभी नहीं बदलते, अगर तब किसी कौम ने कोई हरकत करी, और उसका एक फैसला हुआ तो आज भी अगर कोई वही हरकत करेगा तो उन के साथ भी वही मामला होगा, अल्लाह अपने बन्दों में फर्क नहीं करता, क़ुरआन में ये आयत आपको उनकी कहानी सुनाने के लिए नहीं रखी गई, ये आपकी हिदायत के लिए है कि देखो कहीं ऐसे बातिल अक़ीदे मत पाल लेना। अल्लाह जानता है वो किस के बारे में कब क्या फैसला करेगा, किसको कहां डालेगा और किसको कहां से निकालेगा, लेकिन तुम से ये कह कर साफ मना कर दिया कि क्या तुमने उस से कोई वादा किया है? और ये किसी खास कौम के लिए नहीं, सबके लिए है। क़ुरआन उसूल बताता है, वो जिस पर फिट होंगे, उसी को गिफ्ट हो जाएंगे। इसी आयत से अगली आयत में अल्लाह ने दोज़ख़ में जाने वालों के बारे में भी वाज़ह कर दिया ताकि कोई शक ना रह जाए, देखें:

हाँ जिसने कोई बुराई की और उसके गुनाह ने उसको अपने घेरे में ले लिया, तो वही लोग दोज़ख़ वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।(2:81)

तो जो कोई तौबा किए बगैर बुराइयों से घिरता ही चला जायेगा, उसका ठिकाना हमेशा की जहन्नम है, और मुस्लिमों की अमली ज़िन्दगी का हाल क्या है, इसको बताने की ज़रूरत नहीं है। जो अपनी ख्वाहिशात की पैरवी करने वाले हैं, अल्लाह ने एक जगह नबी स० को उनकी ज़िम्मेदारी तक से बरी कर दिया है, और दूसरी जगह उनको गुमराही में डाल देने की बात कही है। देखें:

क्या तुम ने उस को भी देखा, जिस ने अपना प्रभु अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उस का ज़िम्मा ले सकते हो?(25:43)

क्या तुम ने उस व्यक्ति को नहीं देखा जिस ने अपनी इच्छा ही को अपना उपास्य (इलाह) बना लिया? अल्लाह ने (उस की स्थिति) जानते हुए उसे गुमराही में डाल दिया, और उस के कान और उस के दिल पर ठप्पा लगा दिया और उस की आँखों पर परदा डाल दिया। फिर अब अल्लाह के पश्चात कौन उसे मार्ग पर ला सकता है? तो क्या तुम शिक्षा नहीं ग्रहण करते? (45:23)

अब रसूल अल्लाह ﷺ की कुछ हदीसें देख लें, कि किस किस के बारे में नबी स० ने जन्नत में पहुंच पाने का ही इंकार दिया है, और फिर आज के मुस्लिमों पर गौर करें:
… आप ﷺ ने फ़रमाया: चुग़लखोर जन्नत में नहीं जाएगा। सही बुखारी (6056)

… रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया: ऐसा शख्स जन्नत में दाखिल नहीं होगा, जिस के दिल में ज़र्रा बराबर भी तकब्बुर होगा। सही मुस्लिम (267, 265)

… नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: क़िता रहमी करने वाला (रिश्तेदारों से बुग्ज़ रखने वाला) जन्नत में नहीं जाएगा। सही बुखारी (5984)

वैसे तो अपनी बात की दलील में और भी बोहोत सख्त हदीसें हैं, पर आपके सामने मैंने केवल ये चंद हदीसें रखी हैं, जिन के बारे में नबी स० ने साफ बता दिया कि ये जन्नत में नहीं जाएंगे, क्या ये बुराइयां आज आम मुसलमानों में मौजूद नहीं हैं, फिर हम इतनी आसानी से कैसे कह देते हैं, कि हर मुसलमान जन्नत में जाएगा! ऐसा नहीं है, क्या सहाबा को नहीं पता थी ये बात, वो फिर भी इतना सोचते थे इस बारे में, हज़रत उमर र० जन्नत की बशारत मिलने के बाद भी राज़दार ए रसूल हज़रत हुज़ैफा र० से ये पूछने जा रहे हैं कि उनका नाम कहीं मुनाफ़िक़ों की लिस्ट में तो नहीं है! हज़रत उस्मान कब्र पर बैठकर रो रहे हैं तो दाढ़ी मुबारक तर हुई जा रही है, ये वो असहाब हैं जिन्हें दुनिया में जन्नत की बशारत मिल गई थी, और हमारा हाल क्या है? हमें तो जन्नत का सर्टिफिकेट मिला हुआ है। ये बिल्कुल बातिल अक़ीदा है, ऐसा कुछ नहीं है। हमें अमली ज़िन्दगी में कोशिशें करनी ही पड़ेंगी, फिर उसके बाद अल्लाह की रहमत से उम्मीद रखनी पड़ेगी। दुनिया की छोटी मोटी कामयाबी आसानी से नहीं मिलती, जन्नत जैसी अज़ीम कामयाबी क्या सिर्फ इस बिना पर मिल जाएगी कि हमारा नाम अब्दुल रहमान है? क्या सिर्फ दुनिया के रजिस्टर में मुस्लिम होने की वजह से हम जन्नत में चले जाएंगे? ये हमारी खुशफहमियां हैं, शैतान का खूबसूरत धोखा है और कुछ नहीं! सिर्फ कलमा पढ़ने से जन्नत हासिल नहीं होगी, कलमे को ज़िन्दगी में उतारना पड़ेगा, अगर उसको इलाह कहा है, तो अपनी ख्वाहिशात से ऊपर उठकर इस बात को साबित करना होगा कि तुम उसको इलाह मानते हो! बाकी अब भी कोई गलतफहमी में रहे तो जान ले कि अल्लाह ने हुज्जत तमाम करते हुए सूरह अल-अनकबूत में लाइन से इन 3 आयात में इस “नाम के मुस्लिम” के जन्नत में जाने वाले अक़ीदे और दावे की धज्जियां‌ ही उड़ा दीं:

क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि वे इतना कह देने मात्र से छोड़ दिए जाएँगे कि “हम ईमान लाए” और उन की परीक्षा न की जाएगी?

हालाँकि हम उन लोगों की परीक्षा कर चुके हैं जो इन से पहले गुज़र चुके हैं। अल्लाह तो उन लोगों को मालूम करके रहेगा, जो सच्चे हैं। और वह झूठों को भी मालूम करके रहेगा

या उन लोगों ने, जो बुरे कर्म करते हैं, यह समझ रखा है कि वे हमारे क़ाबू से बाहर निकल जाएँगे? बहुत बुरा है जो फ़ैसला वे कर रहे हैं

अब इस मामले में आखिरी बात भी सुन लें– 
मैं कहता हूं कि हर मुस्लिम जन्नत में जाएगा, लेकिन वो जो अल्लाह की नज़र में मुस्लिम हो, दुनिया का रजिस्टर्ड मुस्लिम नही! मुस्लिम का मतलब होता है फर्माबरदार! तो जो अल्लाह के आगे खुद को सरेंडर कर देगा, अपनी ख्वाहिशात को उसके हवाले कर देगा, वो होगा अल्लाह का सच्चा मुस्लिम! वो ज़रूर जन्नत में जाएगा, क्योंकि बेशक अल्लाह ने उन्हीं से तो वादा किया है जो फर्माबारदार बंदे हैं, जिनसे गलतियां तो हो सकती हैं, लेकिन वो बार बार सच्ची तौबा करके अपने रब की तरफ पलटते हैं, अपने गुनाहों पर अड़ कर सरकशी इख्तेयार नहीं करते। उन्हीं के लिए आखिरत में बेहतरीन अजर है, उसके बदले जो वो करते थे।

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