नफ़रत फैलाने वाले अकसर क़ुरान की कुछ आयतों को out of context (सन्दर्भ बदल कर) या तोड़ मरोड़ कर अपना agenda फैलाने का प्रयास करते रहते हैं।
जैसे क़ुरान 9:5 हवाला देकर कह दिया कि कुरान तड़पा तड़पा कर मारने का हुक्म देता है। यदि आप इस सुरः को पूरा पड़ लें या सिर्फ इसके आगे पीछे की आयत ही पढ़ लें तो आप जान जाएंगे कि यहाँ किस बारे में ज़िक्र हो रहा है और आपको किस तरह भ्रमित किया जा रहा है ,और कही गई यह बात कितनी झूठ एवं निराधार है।
देखते हैं सुरः 9 आयात नम्बर 4
“सिवाय उन मुश्रिकों के, जिनसे तुमने संधि की, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ कोई कमी नहीं की और न तुम्हारे विरुध्द किसी की सहायता की, तो उनसे उनकी संधि उनकी अवधि तक पूरी करो। निश्चय अल्लाह आज्ञाकारियों से प्रेम करता है।”
तो यहीं सपष्ट हो जाता है कि इस सुरः में एक संधि (treaty) की बात हो रही है। और संक्षिप्त में इसका context यह है कि मुस्लिमों और मक्का के मुश्रिकों के बीच एक संधि (treaty) हुई थी । जिस को मुश्रिकों ने एक तरफा तोड़ दिया।
इस वजह से अब जंग का एलान है , इसी का ज़िक्र 9:5 में है कि 4 माह का वक्त है उसके बाद मैदान ए जंग में जो मुशरिक आप से लड़ने आएं उनसे लडो और उनका कत्ल करो।
इसमे भी आपने देखा की में पहले ही इसकी पिछली आयात में बता दिया गया की मुश्रिकों में भी जिन्होंने सन्धि को पूरा किया और तोड़ा नही और ना संधि तोड़ कर लोगो की हत्या करने वालो का साथ दिया वे लोग भी इस आदेश से बाहर हैं। यानी उन्हें कोई नुकसान ना पोहचे।
स्वाभाविक सी बात है कोई जंग के मैदान में ये तो आदेश नही देगा कि मैदान में आप दुश्मन से डर कर भाग जाओ । बल्कि यही कहेगा कि दुश्मन से लड़ो और उन्हें खत्म करो।
औऱ इस तरह का उल्लेख हर प्रमुख धर्म के ग्रंथों में मौजूद है सिर्फ क़ुरान में नहीं।
अब इसकी अगली आयात देखिए:-
और यदि मुश्रिकों में से कोई तुमसे श्रण माँगे, तो उसे श्रण दो, यहाँ तक कि अल्लाह की बातें सुन ले। फिर उसे पहुँचा दो, उसके शान्ति के स्थान तक। ये इसलिए कि वे ज्ञान नहीं रखते।
(क़ुरान 9 :6)
मतलब अगर इस दौरान भी कोई तुमसे पनाह मांगे तो उसको ना केवल पनाह दो। बल्कि उस को हिफाज़त से उसके शांति के स्थान तक भी पोहचा दो।
इस से आप अल्लाह की रहमत और दयालुता का अंदाज़ा लगा सकते हैं और साथ ही इस आयत के सन्दर्भ का भी ज्ञान पाते हैं ।
जंग के मै अलावा इसलाम ना केवल किसी बेगुनाह के कत्ल को मना फरमाता है बल्कि क़ुरान 5:52 में उसे इतना सख्त गुनाह बताया है कि यह ऐसा है जैसे किसी ने सारी मनुष्य जाति का कत्ल कर दिया हो।
कत्ल करना तो बोहत दूर की बात अल्लाह तो ज़मीन में उपद्रव और फसाद करने से ही मना फरमाता है :
जिस तरह ख़ुदा ने तेरे साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर और रुए ज़मीन में फसाद का ख्वाहा न हो-इसमें शक नहीं कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता
(कुरान 28:77)
इसके अलावा भी कई जगह जैसे 2:205,2:11,7:56 आदि जगह पर अल्लाह ने जमीन मैं किसी भी तरह का फसाद और उपद्रव फैलाने से ही सख्त मना किया है।
लेकिन कुछ असामाजिक लोग जानबुझ कर नफरत और डर फैलाने के लिए बेवजह क़ुरान का झूठा हवाला देकर , नृशंस घटनाओं को उस से जोड़ कर ऐसा दिखाने का प्रयास करते हैं जैसे यह इसलाम का आदेश हो।
जिनमे अकसर घटनाएँ या तो फेक या झूठी होती है या अकसर घटना को अलग रंग देकर और उकसाऊ और भड़काओ बना कर इसलाम से जोड़ कर डर ,नफरत और घृणा पैदा करने का कुप्रयास किया जाता है।
ऐसे भड़काऊ प्रयास कई बार किये जाते हैं।
इस तरह के मेसैज के अंत मे कह देना की “अगला नम्बर” आपका है! इस प्रयास की पूरी की पूरी मंशा उजागर कर देता है।
उम्मीद है के आप यह समझेंगे और इस तरह किसी के झांसे में नहीं आएंगे