दस्तावेज़

क्वारन्टीन का आइडिया और पहला इस्लामी अस्पताल

पहला इस्लामी अस्पताल 707-708 ईस्वी में दमिश्क़ में छटे उमूवी खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक ने बनवाया था और इसी अस्पताल में पहली बार मरीज़ों को क्वारन्टीन किया गया.

मेडिकल क्लिनिक हालाँकि नबी करीम सलल्लाहु अलैहि व सल्लम दौर में भी थे. मस्जिद ए नबवी के आँगन में छोटा सा क्लिनिक था. लेकिन यहां इलाज सिर्फ खिदमत के नियत से होता था यानी इलाज करने वाले कोई फीस या तनख्वाह नहीं लेते थे. इसके अलावा जंग के मैदानों में भी एक टेन्ट घायलों के इलाज के लिए होता था. नर्सिंग में माहिर औरतें भी यहां अपनी खिदमात देती थीं .

707 ईस्वी में छठे उमूवी खलीफा वलीद ने बाकायदा एक अस्पताल दमिश्क में खुलवाया. फारसी में इसे बीमारिस्तान कहते हैं. पहली बार इसमें डॉक्टर की टीम रखी गई और उनकी तनख्वाहें मुक़र्रर की गयीं. ये अस्पताल leprosy यानी कोढ़ के मरीज़ों के लिए ख़ास था. यहां पहली बार क्वारन्टीन ( इन्फेक्शन न फैले इसलिए मरीज़ की अलग थलग कर देना,) कोढ़ के मरीज़ों को अलग किया गया. Andrew C Miller के मुताबिक

Ummayad Caliph Al-Walid bin Abdel Malik with building the first permanent bimaristan in Damascus in 707 AD (88 AH). This bimaristan treated chronically ill patients such as lepers and blind people. However, some consider it no more than a lepersoria, as it permitted the quarantine of patients with leprosy from others. There were salaried physicians on staff at all times, and the leprosy patients were treated gratis and granted a monetary stipend upon discharge.

“उमूवी खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक ने पहला बकायदा अस्पताल 707 में दमिश्क में बनाया. ये अस्पताल कोढ़ और आंख के मरीज़ों का लंबे वक्त तक इलाज किया जाता. जब कि कुछ लोगों का ख्याल है कि ये सिर्फ कोढ़ के मरीजों का अस्पताल था यहां मरीज़ों को क्वारन्टीन किया जाता ताकि दूसरे लोग बचे रहें. यहां सारा स्टाफ को लगातार सैलरी मिलती थी और कोढ़ के मरीज़ों का इलाज मुफ्त होता था और डिस्चार्ज होने पर आर्थिक मदद की जाती.”
(Jundi-Shapur, bimaristans, and the rise of academic medical centres the Journal of Royal Society, December 2006 page 615)

ये अस्पताल हर इंसान के लिए था चाहे वो किसी भी मज़हब या इलाक़े का हो.

ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ अस्पताल था बल्कि यहां मेडिकल स्टूडेंट भी पढ़ते थे. इसकी हैसियत एक मेडिकल इंस्टिट्यूट की थी .

इसके बाद इसे मेडिकल की दुनिया में उसूली तौर पर जिस शख्स ने क्वारन्टीन को सामने रखा उसका नाम है इब्ने सीना है जिसे मेडिकल की दुनिया में Avicenna के नाम से जाना है. इब्ने सीना ने क्वारन्टीन के लिए 40 दिन का वक़्त मुक़र्रर किया. यानी मरीज़ को चालीस दिन के अलग रखा जाए. उन्होंने इसे “अरबाईनिया” नाम दिया. अरबाईनिया अरबी में चालीस दिन को कहते हैं. क्वारन्टीन लफ्ज़ अस्ल में इसी का तर्जुमा है. वेनेटन(इटालियन) ज़बान में चालीसा को Quarantena कहा जाता है..

नीचे पहले इस्लामी अस्पताल की इमारत के फ़ोटो हैं देखकर मालूम होता मस्जिद ए क़र्तबा इसी स्टाइल में तामीर हुई थी

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