जलसा-ए-ग़ौसुलवरा
गोरखपुर। हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की याद में तुर्कमानपुर चूड़िहारी गली में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। आगाज़ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुआ। नात व मनकबत मोहम्मद अफ़रोज़ क़ादरी ने पेश की। जलसा शमशेर आलम के संयोजन में हुआ।
मुख्य वक्ता मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम अमन और सलामती का दीन है जो भाईचारे और मोहब्बत का पैग़ाम देता है, साथ ही यह समाज में फैलने वाली हर बुराई जैसे झूठ, चोरी, धोखेबाज़ी, रिश्वत, बेईमानी, बेहयाई, ज़िना और ज़ुल्म वग़ैरा को जड़ से ख़त्म करने का हुक्म देता है। इस्लामी तालीम के मुताबिक़ मुसलमान वो है जिसके हाथ से दूसरे लोगों की जान और माल महफूज़ है। दीन-ए-इस्लाम में बहुत ख़ास बात है जिसकी वजह से यह हर दौर में क़ाबिले क़ुबूल है।
विशिष्ट वक्ता मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब क़ाज़ी) ने मुसलमानों के विकास और कल्याण के लिए तालीम को जरूरी क़रार देते हुए कहा कि मुसलमानों के ज़िंदगी के सभी क्षेत्रों में पिछड़ने की एकमात्र वजह तालीम से दूरी है। मुसलमानों को जहां दीनी तालीम पर ध्यान देने की ज़रूरत है वहीं आधुनिक तालीम को भी अपनाने की ज़रूरत है। क़ुरआन की पहली आयत ‘इकरा’ है। इसका मतलब यह हुआ कि दीन-ए-इस्लाम में इल्म की बहुत अहमियत है। इल्मे दीन हासिल करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज है। हम अपने बच्चों की दुनियावी तालीम पर तो लाखों रूपये पानी की तरह बहा देते हैं लेकिन इस्लामी तालीम के लिए न हमारे पास पैसा है और न ही वक़्त। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि यह दुनिया तो बस कुछ दिन का ठिकाना है उसके बाद हमें अल्लाह के सामने पेश होना है। वहां हर चीज़ का हिसाब लिया जाएगा।
विशिष्ट वक्ता कारी शराफ़त हुसैन क़ादरी ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए हुए रास्ते पर चलकर ही दुनिया की सब परेशानियों का हल निकाला जा सकता है और उससे अमन-चैन को हासिल किया जा सकता है। जिसकी आज दुनिया को बहुत ज़रूरत है। पैग़ंबर-ए-आज़म का फ़रमान है कि अल्लाह उस पर रहम नहीं करता जो इंसानों पर रहम न करे।अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में शांति व भाईचारे की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।