रौशनी बन के छाई दीवाली
मेरे घर मुस्कुराई दीवाली
आओ इस को दिलों में भर लें हम
जो उजाला है लाई दीवाली
हिज्र में यादों के दिये रख कर
अब के मैं ने जगाई दीवाली
ज़ुल्म की तीरगी से गुज़रे हैं
तब कहीं हम ने पाई दीवाली
कट गया मरहबा मेरा बनबास
आज मैं ने मनाई दीवाली
पैरहन उस का झिलमिलाता है
या के है जगमगाई दीवाली
प्यार की आग में जले थे जब
आज वो याद आई दीवाली
रखना रौशन मुझे युंही लोगो
दे रही है दुहाई दीवाली
शम्मे-उल्फ़त जलाएँ आओ हम
वस्ल की रुत है लाई दीवाली
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
सआदतगंज, बाराबंकी
उत्तर प्रदेश
फ़ोन:7007368108