कविता

नात ए पाक: उनकी महक ने……

उनकी महक ने दिल के गु़न्चे खिला दिये हैं
जिस राह चल गए हैं कूचे बसा दिये हैं

जब आ गई हैं जोशे रह़मत पे उनकी आंखें
जलते बुझा दिये हैं रोते हंसा दिये हैं

एक दिल हमारा क्या है आज़ार इसका कितना
तुम ने तो चलते फिरते मुरदे जिला दिये हैं

उनके निसार कोई कैसे ही रंज में हो
जब याद आ गए हैं सब गम भुला दिये हैं

हम से फ़कीर भी अब फेरी को उठते होंगे
अब तो ग़नी के दर पर बिस्तर जमा दिये हैं

असरा में गुज़रे जिस दम बेड़े पे क़ुदसियों के
होने लगी सलामी परचम झुका दिये हैं

आने दो या डुबो दो अब तो तुम्हारी जानिब
कश्ती तुम्ही पे छोड़ी लंगर उठा दिये हैं

दूल्हा से इतना कह दो प्यारे! सवारी रोको
मुश्किल में हैं बराती पुरखार बादिये हैं

अल्लाह क्या जहन्नम अब भी ना सर्द होगा
रो- रो के मुस्तफा ने दरिया बहा दिये हैं

मेरे करीम से गर क़तरा किसी ने मांगा
दरिया बहा दिये हैं, दुर बे बहा  दिये हैं

मुल्के सुख़न की शाही तुम को रज़ाؔ मुसल्लम
जिस सम्त आ गये हाे सिक्के बिठा दिये हैं

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