जीवन चरित्र धार्मिक

ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (2)

लेखक: नौशाद अह़मद ज़ैब रज़वी, इलाहाबाद

आपका शजरये बैयत इस तरह है ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती अज़ ख्वाजा उस्मान हारूनी अज़ हाजी शरीफ चिश्ती अज़ क़ुतुबुद्दीन मौदूर चिश्ती अज़ ख्वाजा नासिर उद्दीन अबु यूसुफ चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु मुहम्मद चिश्ती अज़ ख्वाजा अब्दाल चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु इस्हाक़ चिश्ती अज़ ख्वाजा मुनशाद अला देवनरी अज़ शैख अमीन उद्दीन बसरी अज़ सईद उद्दीन मराशि अज़ सुल्तान इब्राहीम अदहम अज़ ख्वाजा फ़ुज़ैल बिन अयाज़ अज़ ख्वाजा अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद अज़ ख्वाजा हसन बसरी अज़ शहंशाहे विलायत सय्यदना मौला अली अज़ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम (तारीखुल औलिया,सफह 78)

  • ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ये बड़ी ही मशहूर करामत है कि एक मर्तबा आप बग़दाद के सफर में थे आपके चन्द खलीफा भी आपके साथ थे,रास्ते पे एक जगह पड़ाव किया आप और आपके मुरीद रोज़े से थे आपने उनसे थोड़ी सी आग ढूंढ कर लाने को कहा,मुरीद एक जगह पहुंचे जहां आग जल रही थी जब उन्होंने थोड़ी आग उनसे मांगी तो उन लोगों ने देने से मना कर दिया और कहा कि ये हमारा माबूद है हम इसकी पूजा करते हैं लिहाज़ा हम तुम्हे नहीं दे सकते,वो वापस आये और पीर से सारा हाल बयान कर दिया,आप उठे और उन आतिश परश्तों के पास पहुंचे और उनके सरदार जिसका नाम मखशिया था उससे फरमाया कि इस आग को पूजने से क्या फायदा तो कहने लगा कि ये हमारी निजात का ज़रिया है तो आप फरमाते हैं कि तुम बरसो से इसकी पूजा करते हो क्यों ना तुम और मैं इस आग में अपना हाथ डालें अभी पता चल जायेगा कि ये इबादत करने के लायक़ है या नहीं तो सरदार बोला कि आग की फितरत
    जलाना है सो ये जलायेगी आप फरमाते हैं कि बेशक इसकी फितरत जलाना है मगर मेरा रब वो है कि इस आग को भी बाग बना सकता है,ये कहकर आपने उसकी गोद में बैठे हुए उसके बच्चे को उठा लिया और आग में तशरीफ ले गए,मनो मन लकड़ियां जहां जल रही हो उसकी तपिश का क्या आलम होगा कहने की ज़रूरत नहीं,इधर सरदार और उसके मानने वालों ने रोना पीटना शुरू कर दिया कि मुसलमान भी मारा गया और हमारे बेटे को भी ले गया,करीब घंटे भर बाद उसी आग से ख्वाजा उस्मान हारूनी बाहर निकले और बच्चा भी आपकी गोद में था जो निहायत ही खुश व खुर्रम था,जब सरदार ने बच्चे से पूछा कि तू इतना खुश क्यों है तो कहने लगा कि अब्बा मैं एक बाग में था जहां तरह तरह की नेअमतें मौजूद थी तो सरदार ने ख्वाजा उस्मान हारूनी से पूछा कि वो बाग क्या था तो आप फरमाते हैं कि वो जन्नत थी,अगर तुम सब भी कल्मा पढ़कर मुसलमान होते हो तो उस बाग में ले जाने की ज़िम्मेदारी मेरी,आपकी खुली हुई करामत देखकर वो पूरा का पूरा कबीला कल्मा पढ़कर मुसलमान हो गया (खुतबाते अजमेर,सफह 89)
  • जब ख्वाजा अबु इसहाक बैयत होने के लिए ख्वाजा मुनशाद की बारगाह में पहुंचे तो आपने उनसे नाम पूछा तो फरमाया कि इस नाचीज़ को अबु इसहाक कहते हैं तो ख्वाजा मुनशाद फरमाते हैं कि आज से हम तुझे चिश्ती कहेंगे और क़यामत तक जितने तेरे मुरीद होंगे सब चिश्ती कहलायेंगे,ये है सिलसिलाये चिश्तिया की वजह तसमिया (तारीखुल औलिया,सफह 79)
  • ख्वाजा गरीब नवाज़ को लेकर आपके पीरो मुर्शिद हज के सफर को गए और वहां काबे का गिलाफ पकड़कर फरमाया कि ऐ मौला मैंने मोइन उद्दीन को तेरे सुपुर्द किया तो ग़ैब से निदा आई कि हमने मोईन उद्दीन को क़ुबूल किया फिर वहां से रौज़ए अनवर की हाज़िरी दी और ख्वाजा गरीब नवाज़ से सलाम पेश करने को कहा तो आपने सलाम किया तो जाली मुबारक से बा आवाज़ बुलंद जवाब आता है “व अलैकुम अस्सलाम या क़ुतुबुल मशायख लिलबर्रे वलबहर” जिसे सबने सुना (अनीसुल अरवाह,सफह 6)
  • उसके बाद कुछ और दिन भी पीरो मुर्शिद की बारगाह में गुज़ारे और उन्ही के क़ौलो तर्जुमान को क़लम बंद करते रहे जिसे बाद में आपने अनीसुल अरवाह का नाम दिया,उनसे इजाज़त ली और अस्फहान पहुंचे वहां ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को मुरीद किया और उन्हें साथ लेकर फिर रौज़ए अनवर पर हाज़िरी दी,जहां आपको ये बशारत मिली कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि “ऐ मोईन उद्दीन तू मेरे दीन का मोईन है मैंने तुझको हिंदुस्तान की विलायत बख्शी जा अजमेर जा और एक जन्नती अनार बख्शा,ख्वाजा गरीब नवाज़ को हिंदुस्तान के रास्ते का इल्म ना था तो आलमे ख्वाब में आपको पूरा नक्शा दिखाया गया,आप वहां से अपने पीर की बारगाह में पहुंचे और इजाज़त लेकर हिंदुस्तान की तरफ चल पड़े,आपके साथ ख्वाजा बख्तियार काकी,हज़रत मुहम्मद यादगार और ख्वाजा फखरूद्दीन गुर्देज़ी भी थे ये नूरानी काफिला सरहदी रास्तो से पंजाब (पाकिस्तान) पहुंचा उस वक़्त शहाब उद्दीन गोरी को शिकस्त हुई थी और उसकी फौज वापस जा रही थी,लोगों ने ख्वाजा गरीब नवाज़ को भी मना किया कि ये सही वक़्त नहीं है तो आप फरमाते हैं कि तुम तलवार के भरोसे गए थे और हम अल्लाह के भरोसे जा रहे हैं,फिर मुलतान होते हुए लाहौर पहुंचे और वहां दाता गंज बख्स की बारगाह में चिल्ला किया और वहां से दिल्ली पहुंचे और खांडे राव के महल के आस पास अपना पड़ाव किया,आपकी रश्दो हिदायत से दिल्ली में जब बहुत लोग मुसलमान होने लगे तो खांडे राव ने उन्हें रोकने के लिए तरह तरह की तदबीर की मगर सब नाकाम रही आखिर में एक शख्श को लालच देकर आपका मोतकिद बनाकर आपके पास भेजा कि वो आपको क़त्ल करदे,जब वो ख्वाजा गरीब नवाज़ के सामने आया तो आप फरमाते हैं कि झूटी अक़ीदत मंदी से क्या फायदा जिस मकसद से आया है वो कर जब उसने ये सुना तो कांप उठा फौरन क़दमो में गिरकर माफी मांगी और मुसलमान हो गया,जब दिल्ली में काफी मुसलमान हो गए तो आपने अपने खलीफा ख्वाजा बख्तियार काकी को दिल्ली में रहने को कहा और खुद अजमेर की तरफ रवाना हुए (तारीखुल औलिया,सफह 86)

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