जीवन चरित्र

जान तो जाते ही जाएगी……क़यामत ये है के यहां मरने पे ठहरा है नज़ारा तेरा

देवबंद मकतबे फ़िक्र के आलिम कौसर नियाज़ी आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दिनो मिल्लत अल हाफ़िज़, अल क़ारी, अश्शाह इमाम अहमद रज़ा ख़ान रहमतुल्लाह अलैहि की शान ब्यान करते हुवे कहते है की आप बयक वक़्त

मुस्लिम भी है, मुबल्लिग़ भी है, मुफ़्ती भी है ,आलिम भी है, फ़ाज़िल भी है, मुअल्लिम भी है, मुजद्दिद भी है, मुहद्दिस भी है, मुफ़स्सिर भी है, मुतकल्लिम भी है, मुहक्क़िक़ भी है, आरिफ भी है, शायर भी है, अदीब भी है, ख़तीब भी है, फ़क़ीह भी है, मोरिख भी है, मुसन्निफ़ भी है, हाफ़िज़ भी है, क़ारी भी है, साइंसदा भी है, फ़लासफ़र भी है, और सबसे बढ़कर ये की सूफ़ी भी है, और वली भी है…..अल्लाह ने ऐसा हाफ्ज़ा अता किया की सिर्फ एक महीने में हाफ़िज़ क़ुरआन हो गए थे….,माशा अल्लाह…

उन्हें बर्रे सग़ीर का इमामे आज़म कहा जाता है…पूरी दुनिया में अज़ान के बाद सबसे ज़्यादा जो कलाम पढ़ा जाता है वो आपका लिखा सलाम है “मुस्तफा जाने रहमत पे लाखो सलाम”…….और ये तभी मुमकिन है जब अल्लाह की मक़बूलियत की मुहर उस पर लग जाए…..

ऐसे ज़लीलुलक़द्र इमाम,मुजद्दिद,आलिमे दीन को आज की नस्ल से वाबस्ता होना बेहद ज़रूरी है…..और ये हमारी ज़िम्मेदारी है।

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