कविता

नात: ढूंढते हैं लोग उन जैसा बशर बेकार है

ढूंढते हैं लोग उन जैसा बशर बेकार है
मुस्तफ़ा का मिस्ल कोई भी नहीं संसार में

बे खुदी होती है कैसी हसरते दीदार में
डस लिया एक मार ने, एक यार को, एक ग़ार में

चौदहवीं के चांद में इतनी चमक है ही नहीं
नूर है जितना मेरे सरकार के रुखसार में

दर बदर जन्नत की खातिर क्यों भटकते हैं भला
खुल्द तो है आपके आ़माल में, किरदार में

अहले दानिश को पता देता है वह फ़िरदौस का
जिसका दिल दीवाना होता है नबी के प्यार में

दोनों बाज़ू काट कर बातिल यज़ीदी खुश ना हों
अब भी बाकी है बहुत हिम्मत अलमबरदार में

जैसे अहमद शहद घुल जाए दहेन में इस तरह
चाशनी होती है नात के अशआ़र में

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