धार्मिक

बातें दीन की

  • मर्द का कांधे तक बाल रखना सुन्नत से साबित है मगर इससे ज़्यादा बढ़ाना हराम है (अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 127)
  • खुत्बे की अज़ान के बाद खुत्बे से पहले या बाद में उर्दू में उसका तर्जुमा बयान करना खिलाफ़े सुन्नत है (रद्दे बिदआत व मुनकिरात,सफह 298)
  • जिस निक़ाह में मीयाद तय हो मसलन कुछ दिन या महीने या साल के लिए निकाह होता हो ये हराम है (फतावा अफ्रीका,सफह 51)
  • एक हाथ से मुसाफा करना नसारा का तरीक़ा है मुसाफ दोनों हाथों से करना ही सुन्नत है (बुखारी,जिल्द 2,सफह 926)
  • ईमान और कुफ्र में कोई वास्ता नहीं मतलब ये कि या तो आदमी मुसलमान होगा या काफ़िर बीच की कोई राह नहीं (बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 54)
  • मर्द को 4.3 ग्राम चांदी से कम की एक अंगूठी एक नग की पहनना ही जायज़ है औरतों के लिए सोने चांदी में कोई क़ैद नहीं (फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 56)
  • आलिम की तारीफ़ ये है कि अक़ायद का पूरा इल्म रखता हो और उस पर मुस्तक़िल हो और अपनी ज़रूरत के मसायल को किताबों से बग़ैर किसी की मदद के निकाल सके अगर ऐसा नहीं है तो वो आलिम नहीं और ऐसे को तक़रीर करना हराम है (अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 7)
  • मर्द या औरत का नसबंदी करा लेना हराम और सख्त हराम है (फतावा मुस्तफवियह,सफह 530)
  • अगर मुसलमान किसी काफिर या मुनाफिक़ के मरने पर उसे मरहूम या स्वर्गवासी कहे या उसकी मग़फिरत की दुआ करे तो खुद काफिर है (बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 55)
  • जो ये अक़ीदा रखे कि हम काबे को सजदा करते हैं काफिर है कि सजदा सिर्फ खुद को है और काबा इमारत है खुदा नहीं (फतावा मुस्तफविया,सफह 14)
  • ग़ैर मुस्लिमों के त्योहारों में शामिल होना हराम है और अगर माज़ अल्लाह उनकी कुफ्रिया बातों को पसंद करे या सिर्फ हल्का ही जाने जब तो काफ़िर है (इरफाने शरीयत,हिस्सा 1,सफह 27)
  • आखिर ज़माने में आदमी को अपना दीन संभालना ऐसा दुश्वार होगा जैसे हाथ में अंगारा लेना दुश्वार होता है (कंज़ुल उम्माल,जिल्द 11,सफह 142)
  • आखिर ज़माने में आदमी सुबह को मोमिन होगा और शाम होते होते काफिर हो जायेगा (तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 52)
  • फरिश्ते ना मर्द हैं और ना औरत वो एक नूरी मखलूक़ हैं मगर वो जो सूरत चाहें इख़्तियार कर सकते हैं पर औरत की सूरत नहीं इख़्तियार करते (तकमीलुल ईमान,सफह 9)
  • जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम चौथे आसमान पर जिंदा हैं और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत में जिस्म के साथ मौजूद हैं तो फिर मेराज शरीफ में मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के जिस्मे अनवर के साथ सफर का इंकार क्यों (मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 391)
  • उल्माये अहले सुन्नत ने अगर किसी को काफिर या बेदीन या गुमराह का फतवा दिया तो बेशक रब के नज़दीक भी वो वैसा ही ठहरेगा उस पर तौबा वाजिब है (फतावा मुस्तफविया,सफह 615)
  • कोई ग़ैर मुस्लिम मुसलमान होना चाहे तो उसे फौरन कल्मा पढ़ाया जाए कि जिसने भी उसे कल्मा पढ़ाने में ताख़ीर की तो खुद काफिर हो जायेगा (फतावा मुस्तफविया,सफह 22)
  • उसूले शरह 4 हैं क़ुरान हदीस इज्माअ और क़यास,जो इनमें से किसी एक का भी इंकार करे काफिर है (फतावा मुस्तफविया,सफह 55)

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