हदीस शरीफ़
हज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही व सल्लम न इरशाद फ़रमाया:
अफ़ज़ल क़ुर्बानी वो है जो बा एतबारे क़ीमत आला हो और खूब फ़रबा हो। (इमाम अहमद, बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 131)
हदीस शरीफ़
इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी
हुजूर ने रात में कुर्बानी करने से मना फ़रमाया। (तिब्रानी)
हदीस शरीफ़
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया:
चार क़िस्म के जानवर क़ुर्बानी के लिए दुरुस्त नहीं
1, काना जिसका काना पन ज़ाहिर है, और
2, बीमार जिसकी बीमारी ज़ाहिर हो, और
3, लंगड़ा जिसका लंग ज़ाहिर है और
4, ऐसा लाग़र (कमज़ोर) जिसकी हड्डियों में मग़्ज़ ना हो। (इमाम अहमद, बहारे शरीअत हिस्सा 15, सफ़ह 131, इमाम मालिक, तिर्मिज़ी, अबू दाऊद, निसाई, इब्ने माजा, व दारमी)
हदीस शरीफ़
रिवायत है के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने
कान कटे हुए और सींग टूटे हुए की क़ुर्बानी से मना फ़रमाया। (इमाम अहमद, इब्ने माजा)
हदीस शरीफ़
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि
हम जानवरों के कान और आंखें ग़ौर से देखलें और उसकी क़ुर्बानी ना करें जिसके कान का अगला हिस्सा कटा हो और ना उसकी जिसके कान का पिछला हिस्सा कटा हो ना उसकी जिसका कान फटा हो या कान में सुराख़ हो। (तिर्मिज़ी, अबू दाऊद, निसाई, दारमी)
हदीस शरीफ़
इमाम बुख़ारी इब्ने उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम ईदगाह में नहरो ज़िबह फ़रमाते थे। (बहारे शरीअत हिस्सा 15 सफ़ह 132)
लेख: अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यूपी इंडिया