कविता

किसानों का साथ दो

फ़रीदी सिद्दीकी़ मिस्बाही

जफा़ कशी में किसानों का रंग है बे जोङ
ज़मीं के सीने से फ़सले अनाज खींचते हैं

ये जब भी उठते हैं जा़लिम से अपना हक़ लेने
बङी दिलेरी से शाहों का राज खींचते हैं

ऐ हुकमरानो! संभल जाओ मानो इन की बात
ये जि़द पे आऐं तो फिर तख्तो ताज खींचते हैं

ज़माना इन से सबक़ इत्तेहाद का सीखे
ये मौज बन के सफे इहतिजाज खींचते हैं

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *