गोरखपुर। ईद मिलादुन्नबी की पूर्व संध्या पर मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में महफ़िल-ए-ईद मिलादुन्नबी हुई। संचालन मौलाना दानिश रज़ा अशरफी ने किया।
मुख्य वक्ता कारी मुहम्मद अनस रजवी ने आखिरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी व सीरत पर रौशनी डालते हुए कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे जमाने में जन्म लिया, जब अरब के हालात बहुत खराब थे। बच्चियों को ज़िंदा दफ़्न कर दिया जाता था। महिलाओं व विधवाओं के साथ बुरा सुलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें निकल जाती थीं। अरब का समाज कबीलों में बंटा था। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए इस्लामी माह रबीउल अव्वल शरीफ़ की 12 तारीख़ को अरब के मक्का शहर में पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ। वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह व वालिदा का नाम हज़रते आमिना था। दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब थे। बचपन में वालिद का साया उठ गया। आपके दादा ने परवरिश की। पैग़ंबरे इस्लाम ने जब अल्लाह का पैग़ाम आम करना शुरु किया तो उस दौर के मक्का में रहने वाले लोगों को काफी बुरा लगा। आपको तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। आपने हर ज़ुल्म का डटकर सामना किया। आपको मक्का से हिजरत करने पर मजबूर किया गया। आप मदीना शरीफ चले गए। इतनी परेशानियों के बाद भी आपने अपने मिशन को नहीं छोड़ा और अल्लाह के पैग़ाम को पूरी दुनिया में पहुंचाया। आपने मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक़ दिलाया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। महफ़िल में हाफिज अशरफ़ रज़ा, हाफिज सैफ अली, नूर मोहम्मद दानिश सहित तमाम लोग मौजूद रहे।