लेख शिक्षा

मदरसें सदियों से भारत की शिक्षा पद्धति का हिस्सा रहे हैं

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र बाबू, हिंदी के महान लेखक उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत मदरसे से हुई। मदरसों को लेकर जितना भ्रम फैलाया जाता है स्थिति बिल्कुल ही उसके विपरीत है। मदरसें सदियों से भारत की शिक्षा पद्धति का हिस्सा रहे हैं जिसमें पढ़ कर बच्चों ने अदब और मुहब्बत सीखा है। गलती अगर देश में कहीं मदरसों को चलाने वाले कर रहे हैं तो ज़िम्मेदार उनको ठहराया जाना चाहिए, सभी मदरसों पर आरोप मढ़ना अनुचित है निंदनीय है।

सरकार की नीति और नीयत बच्चों के सुंदर भविष्य को संवारने को लेकर है तो इसका स्वागत होना चाहिए, मदरसा चलाने वालों के लिए भी ज़रूरी है कि सरकारी नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करें। मदरसों की कुव्यवस्था के कारण सारा इस्लामी म’आशरा शर्मसार होता है। असम से लेकर दिल्ली तक मदरसों पर हो रही चर्चा को एक सकारात्मक रूप देने की ज़रूरत है, राज्यस्तरीय संवाद की शुरुआत होनी चाहिए। संवाद ही विवाद पर विराम लगाने का एकमात्र सर्वोत्तम विकल्प है। आदरणीय माननीयों से सादर अनुरोध है कि संवाद की शुरुआत करें, हम बच्चों के सुनहरे भविष्य और मदरसों में इस्लामी शिक्षा के साथ साथ सकारात्मक सुधार के पक्षधर हैं, सम्मान और समानता की अपेक्षा करते हैं।

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