गोरखपुर

वो इंसाफ के लिए पिछले दो दिनों से लगा रही मण्डलायुक्त कार्यालय का चक्कर

जीडीए के अधिकारियों की चूक से एक गरीब विधवा का मकान सील होने की कगार पर

गोरखपुर: (मनव्वर रिज़वी) 8Jan// सीएम के जिले का विकास प्राधिकरण अक्सर विवादों से घिरा रहता है। कभी मानबेला के किसानों से तो कभी भवन के आवंटियों से तो कभी मानचित्र और अवैध निर्माण को लेकर गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने सुर्खियां बटोरी।
ताज़ा मामला एक बूढ़ी विधवा का है जो पिछले दो दिनों से बड़ी खामोशी के साथ मण्डलायुक्त जयंत नार्लिकर के कार्यालय पर इस उम्मीद से आ रही है कि कमिश्नर साहब गोरखपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष होने के नाते उसकी बातों को सुनेंगे और उसे इंसाफ मिल जाएगा। लेकिन यह शायद इतना आसान नहीं है क्योंकि गोरखपुर महोत्सव और खिचड़ी मेले की तैयारियों को लेकर मंडलायुक्त के कंधे पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है जिसकी वजह से उनका कार्यालय पर बैठना कम हो रहा है।
बूढ़ी विधवा का आयुक्त कार्यालय परिसर में पेड़ के नीचे बैठकर एकटक गेट की ओर देखना और किसी सरकारी गाड़ी के आते ही खड़े हो जाना फिर निराश होकर बैठ जाना मानो उसके पूरे दिन दिनचर्या बन गयी।
लगातार दो दिनों से आयुक्त कार्यालय पर आ रही बूढ़ी महिला से जब हमने उनकी समस्या पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका नाम सावित्री देवी है और वह गोपलापुर थाना रामगढ़ताल की रहने वाली है। पिछले 20 – 22 सालों से वह अपने जिस मकान में रह रही थी वहां के आसपास की ज़मीन को अधिग्रहित कर गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने व्यवसायिक दर्जा दे दिया है और 2007 से वहां सड़क नाली और अन्य कार्यों के साथ विधुत व्यवस्था के लिए पोल आदि लगा दिया।
विकास का पहिया जब घूमा तो महिला का पुराना जर्जर मकान वहां निर्माण कार्य और सड़क बनने से नीचा हो गया जिससे बरसात के दिनों में घर के अंदर पानी घुस आता और छोटे छोटे बच्चों के साथ पूरे परिवार को पूरी पूरी रात जागकर गुज़ारना पड़ता। जब मकान में रहने लायक नहीं रहा तो प्रार्थिनी ने कुछ पैसे जमाकर पक्का मकान बनवाने के लिए शटरिंग आदि करा लिया साथ ही जीडीए से मानचित्र स्वीकृति के लिए 2019 में मकान का नक्शा भी जमा करा दिया ।
महिला ने आगे बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और उसके पड़ोसी चाहते हैं कि वह अपना मकान उन्हें बेच दे। वह यह भी चाहते हैं कि हम सार्वजनिक रास्ते का प्रयोग न करके दूसरे रास्ते का प्रयोग करें जिससे वह दीवार उठाकर वहां खत्म हो रही जीडीए की सड़क पर पूरा कब्जा कर लें।
महिला ने कहा जब हमने अपने मानचित्र के संबंध में जीडीए से संपर्क किया तो वहां कहा गया कि आप का आवासीय मानचित्र पास नहीं हो सकता है आप को व्यवसायिक मानचित्र पास कराना होगा तो हमने जीडीए के तमाम अधिकारियों से कहा कि क्योंकि मेरे पास मकान नहीं है इसलिए किसी भी तरह से मेरा नक्शा चाहे वह व्यवसायिक ही पास कराना हो, करा दीजिए लेकिन मुझ गरीब कमजोर की बात किसी ने नहीं सुनी और मेरे पड़ोसी की जान पहचान और उसकी पहुंच के कारण जीडीए में सब यह कह रहे हैं कि तुम्हारा मकान सील कर देंगे। सर्दी का मौसम होने के कारण हमारा परिवार अत्यंत कष्ट में जीवन यापन करने को मजबूर है।
इस सम्बंध में जीडीए से सम्पर्क करने पर जानकारी मिली की महिला के मकान की सीलबन्दी का आदेश हो चुका है।
हालत ये है कि प्राधिकरण की एक चूक का खमियाज़ा एक निर्दोष परिवार भुगतने की राह देख रहा है।
बहरहाल आयुक्त कार्यालय पर रोज़ मण्डलायुक्त का इंतेज़ार करती बूढ़ी विधवा को इंसाफ कब मिलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जब सरकार हर गरीब के सर पर छत देने का वादे और गरीबों के दर्द समझने वाले सीएम योगी की सर्दी के मौसम में रैन बसेरों को चाक-चौबंद रखने की मंशा पर उनके जिले के विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की कार्यशैली एक प्रश्न चिन्ह है।

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