सामाजिक

सोशल मीडिया और बहकते नौजवान

ग़ुलाम मुस्तफा नईमी
रौशन मुस्तक़बिल दिल्ली

जब से सोशल मीडिया पर शॉर्ट वीडियो ऐप लॉन्च हुए हैं, तब से हमारे चारों ओर अभिनेताओं, जोकरों, नर्तकियों और मिमक्री करने वालों की पूरी फौज तैयार हो गई है, लड़कों के साथ-साथ लड़कियां भी इस झुंड में शामिल हैं।

पहले लोग इन वीडियो ऐप का इस्तेमाल केवल सस्ते मनोरंजन के लिए करते थे इसलिए ज्यादा चलन नहीं था। लेकिन जब वीडियो के जरिए पैसा कमाने का विकल्प मिला तो पिछड़े से पिछड़े गांव देहात के लड़के-लड़कियों ने भी वो तूफ़ान मचाया कि अल्लाह की पनाह!!

खेतों, कारखानों, ईंट भट्ठों में काम करने वाले, रिक्शा ,रेहड़ी पटरी वाले भी मसख़री में शहरी छोकरों को अच्छी टक्कर दे रहे हैं।

कहावत है कि जब तूफान आता है तो पहले सैलाबी लहरें आहिस्ता आती हैं, धीरे-धीरे कचरा बहता हुआ आता है। उसके बाद जब बाढ़ आती है तो सब कुछ बह जाता है। इन ऐप्स के आने के बाद भी यही हुआ। शुरुआती दिनों में कुछ निठल्ले लड़के ही मसख़री और नौटंकी करते फिरते थे, लेकिन जैसे-जैसे लहरें तेज होती गईं, बाढ़ की तीव्रता बढ़ी, बात यहाँ तक आ गई कि गांवों और शरीफ परिवारों की लड़कियों ने भी चोरी छुपे वीडियो बनाने और अपलोड करने शुरू कर दिए।

कहते हैं सोशल मीडिया एक नशा है। जिसे लग जाऐ वो हर वक्त इस के नशे में धुत रहता है। इस नशे में अगर पैसा कमाने का जुनून शामिल हो जाए नशा और तेज़ हो जाता है। YouTuber और शॉर्ट वीडियो बनाने वालों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। वे सिर्फ वीडियो बनाने से संतुष्ट नहीं होते जब तक कि उस पर बड़ी संख्या में लाइक और सब्सक्राइबर न हों। ऐप कंपनियां और YouTube इनके आधार पर ही भुगतान करते हैं।

इसी हैंगओवर का असर है कि शरीफ परिवारों की लड़कियां भी अश्लील वीडियो बनाकर अपलोड कर रही हैं और लड़के पूरी तरह से गाली-गलौज और बेहयाई पर उतर आए हैं।

क्योंकि इस फील्ड में युवाओं की संख्या बहुत है। बड़ी संख्या में वीडियो बन रहे हैं हैं। जैसे-जैसे वीडियो अपलोड हो रहे हैं, दर्शकों का टेस्ट भी batter than best की डिमांड करने लगा है। इसलिए नये से नया content और presentation बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। टीवी और सिनेमा एक उद्योग के रूप में स्थापित हैं जहाँ प्रत्येक दृश्य में दर्जनों विशेषज्ञों की कड़ी मेहनत और कौशल लगता है फिर एक अच्छा सीन बनता है। लेकिन सड़कों पर शार्ट वीडियो बनाने वाले लड़के और लड़कियां दो या चार की टोली में होते हैं और कुछ विशेष शिक्षित भी नहीं होते इसलिए लड़के धीरे-धीरे फूहड़पन और अभद्र भाषा पर उतर आए हैं जबकि लड़कियां अश्लील और कामुक नृत्य करने पर उतर आई हैं। अगर समय रहते इस तूफान को नहीं रोका गया तो ख़ुदा जाने क्या होगा ??

कैसे हो रोक थाम?

इरादे मजबूत हों तो किसी भी बुराई को रोका जा सकता है लेकिन समस्या जितनी बड़ी होगी काम करना उतना ही कठिन होगा। सोशल मीडिया की पहुंच इतनी बढ़ गई है कि अब किसी के लिए भी इसे प्रतिबंधित करना संभव नहीं है। हां दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करें तो इन समस्याओं को काफी हद तक रोक सकते हैं। माता-पिता, शिक्षक, इमाम और सामाजिक रूप से जिम्मेदार सभी लोग इस अभियान में अपनी भूमिका निभाएं। यहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदु नीचे दिए गए हैं:

🔸बच्चों को चुप कराने या उन्हें हंसाने के लिए फिल्मी गाने आदि का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। बिगाड़ की शुरुआत यहीं से होती है।

🔹 जिस उम्र में बच्चे शब्दों को समझने लगते हैं, उस उम्र में बच्चों के सामने भूल कर भी गाली गलौच न की जाए।

🔸 सामाजिक चिंतकों की एक टीम बनाई जानी चाहिए जो इन ऐप्स का रचनात्मक उपयोग करने के उपाय तलाश कर सकें।

🔹 मदरसों स्कूलों में सामाजिक नैतिकता और शिष्टाचार सिखाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

🔸 शिक्षक स्वयं अपने छात्रों के लिए रोल मॉडल बनें और समय-समय पर ऐसे विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा विशेष लेक्चर कराऐं जाऐं।

🔸मस्जिदों के इमाम ऐसे मुद्दों पर अच्छे ढंग और शालीनता से प्रकाश डालें ताकि युवा पीढ़ी इन घिनौने कामों के बारे में जागरूक हो और उनसे परहेज़ करे।

🔹ऐसे विषयों पर बयानबाजी का स्तर शालीन हो ताकि लाभ के बजाय नुकसान न पहुंचे।

🔸 समय-समय पर सामाजिक रूप से आयोजित बैठकों में इन मुद्दों चर्चा का आयोजन किया जाऐ।

🔹माता-पिता अपने बच्चों पर विशेष ध्यान दें यदि उन्हें भटकता देखें तो उन्हें प्यार मुहब्बत से सुधारने का प्रयास करें।

🔸इमामों और सामाजिक नेताओं को भी ऐसे मौकों पर रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए ताकि बुराई को पनपने का ज्यादा मौका न मिले।

साथ ही समाज में बढ़ती कुप्रथा पर अंकुश लगाने के लिए जो भी उपयोगी और आवश्यक कदम हो, उठाए जाएं और जो लड़के-लड़कियां व्यर्थ और गलत कामों में अपनी जवानी बर्बाद कर रहे हैं, उन्हें अनैतिकता के दलदल से बचाने के लिए भी उपयोगी और आवश्यक कदम उठाए जाएं।

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