सैर सपाटा

हवा बंगला: जिसके पास से गुजरने में भी डरते थे लोग

इंदौर में एक खूबसूरत इमारत है जो 150 साल पहले इंदौर की सबसे खूबसूरत इमारतों में शुमार थी।
धीरे~धीरे वो दहशत का अड्डा बनी। लोग उसे भूत बंगला कहने लगे। लोगों में इस इमारत का इतना ज्यादा खौफ था कि दिन में भी इसके सामने से गुजरने से डरते थे।

दोस्तों उस नायाब इमारत का नाम है हवा बंगला!!!

इंदौर की दक्षिण~पश्चिम दिशा में फूटी कोठी से आगे
रंगवासा रोड़ पर सन 1884 में इंदौर महाराज शिवाजी राव होलकर ने करीब एक लाख रुपए की लागत से इसे बनवाया था।

महल एक ऊंचे टीले पर बनवाया गया था।
ताकि आठों पहर बहने वाली ठंडी हवाएं महल में चारों तरफ से दाखिल होकर अंदर के माहौल को मदहोश और खुशनुमा बना सके। इंदौर के महाराज शिवाजी राव होलकर तफरीह के लिए ज्यादातर सुनसान इलाके पसंद करते थे। शिकार के बहुत शौकीन थे। उनके द्वारा तामीर इमारतें आज भी काबिले गौर हैं।

राला मंडल पहाड़ की चोटी पर खड़ा शिकारगाह , कजलीगढ़ किला , फूटी कोठी और हवा महल सब उनकी तामीर नायाब इमारतें हैं। आज ये सब भूतिया मुकाम है। करीब बनी फूटी कोठी के खूफिया गलियारे तो देखने लायक है। इंदौर की भूल~भुलैया है फूटी कोठी।

महाराज ने आमोद-प्रमोद के लिए हवा बंगला इटालियन विला की तरह बनवाया था। महल के चारों तरफ खिड़कियां और बेशुमार झरोखे रखे गए ताकि हवा छनकर अंदर आती रहे , महल में हवा के आने का जबरदस्त बंदोबस्त था। इसीलिए यह इमारत हवा बंगला कही जाने लगी।

बंगले में खिड़की दरवाजों की तामीर भी इसी तरह से की गई कि आठों पहर पूरे बंगले में कुदरती हवा का लुत्फ लिया जा सके। इसी के चलते बंगले का नाम हवा बंगला मशहूर हुआ।

शिवाजी राव होलकर और दीगर होलकर यहां सिर्फ तफरीह और शिकार के लिहाज से आते थे। बाकी दिनों ये सुनसान पड़ा रहता था। चौकीदार भी मुश्किल से यहां टिकते थे। आसपास घने जंगलात थे। आबादी से कोसों दूर ये इलाका काफी सुनसान और डरावना था। फूटी कोठी पहले से खौफनाक और नाम से बदनाम थी। इसके सामने आते ही लोगों की सांसे रुक जाती थी। इसलिए ये सारा इलाका भूतिया लगता था।

हवा बंगला तो बिल्कुल रामसे ब्रदर्स की भूतिया फिल्मों के बंगले जैसा खौफनाक नजर आता था। लोग इसे भूत बंगला कहने लगे। इसके आसपास से गुजरना यानि मौत को दावत देना। सारे इंदौर में ये जगह भूतिया तौर पर मशहूर थी।

उन दिनों विविध भारती पर एक कार्यक्रम आता था।
हवा महल जिसमें हास्य नाटकों की प्रस्तुति सुनाते थे।
आइए सुनिए कार्यक्रम हवा महल….
इंदौर के लोग कहते थे मत जाइए हवा महल….

बरसों तक लोग यहां आने से डरते थे।
नब्बे के दशक तक लोगों में हवा बंगले को लेकर खौफ कायम रहा । धीरे~धीरे आसपास कालोनियां कटी लोग बसने लगे। तब जाकर इंदोरियों को तसल्ली हुई।

वैसे इस तीन मंजिला खूबसूरत इमारत की बनावट आयताकार है। पूरब में प्रवेश द्वार है, जिसमें खंबों पर आधारित पोर्च है। तराशे गए बेसाल्ट प्रस्तर से तामीर बुनियाद जमीन से करीब तीन फीट ऊपर है।

इसे ईंट, चूने और काप्ट से बनाया गया है। पूरे बंगले में लकड़ी का काम बखूबी किया गया है। इस इमारत में करीब 25 कमरे हैं। 1884 में बनी ये इमारत अपने जमाने में इंदौर की सबसे खूबसूरत इमारतें में से एक थी।

इमारत के बीच दो खम्बों का खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है। दूसरी मंजिल के खंबे कोरेथियन शैली के हैं। पश्चिमी जानिब पोर्च के जगह पर छोटा-सा बरामदा है। इसमें तीन महराब से सजे दरवाजे हैं। दरअसल हवा बंगला इटालियन विला की भांति है।

लालबाग बनने के बाद इसका महत्व कम हुआ।
अब इस इमारत में इंदौर नगर निगम का जोनल ऑफिस संचालित हो रहा है। पहले जैसी उत्सुकता , डर और बंगले की रौनक अब नहीं रही।

मैंने तो हवा बंगले को लेकर ढ़ेरों किस्से सुने थे।
क्या आपने कभी हवा बंगले को लेकर कोई किस्सा सुना है? अगर हां तो जरूर बताइएगा।

अपन इंदौरी
जावेद शाह खजराना
9340949476

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