सैर सपाटा

गुलर शाह वली की दरगाह जहां फिल्म एक्टर जानी वॉकर की दुआ कुबूल हुई……

जावेद शाह खजराना (लेखक)

इंदौर के नौलखा इलाके में खान नदी के तीरे गूलर का एक बहुत पुराना दरख़्त है। इस गुलर की खोह में एक बुजुर्ग की मजार है , जिसे लोग गुलर शाह वली कहते है। चिड़ियाघर के ठीक सामने , बंबई आगरा रोड़ से सटी है हजरत गुलर शाह वली की बरसों पुरानी मजार

इंदौर में जन्मे मशहूर कॉमेडियन जॉनी वॉकर साहब जब छावनी के इस्लामिया करीमिया बॉयज स्कूल में पढ़ते थे। स्कूल की छुट्टी/तड़ी मारकर या फुरसत के वक्त नौलखा स्थित हजरत गुलर शाह वली रह0 की दरगाह पर जियारत के लिए अक्सर आया करते।

किशोर जानी वाकर यहां बैठे~बैठे दुआ करते कि उनकी किस्मत का तारा चमक जाए। वो भी फिल्म स्टार बन जाएं। जानी वॉकर की दुआ कुबूल हुई। ये बात सन 1936 के आसपास की है।

जानी वॉकर बाम्बे पहुंचे।
बस कंडक्टर बने। जानी वाकर का असली नाम बदरुद्दीन था , इसी नाम से उन्होंने “आखरी पैगाम” फिल्म में बतौर जूनियर आर्टिस्ट पहली बार कैमरा फेस किया।

एक मर्तबा बस में आपकी मुलाकात बलराज साहनी से हुई। उन्होंने जानी वाकर को गुरुदत्त के पास भेजा और बाजी” फिल्म से जानी वाकर की धमाकेदार इंट्री हुई।

हिंदी फिल्मों के बेताज कामेडियन जानी वाकर ने बाद में अपने बंगले पर महू और मानपुर के कई लोगों को काम पर रखा। इनमें मेरी परदादी की बहन और दादी की 2 बहनें भी शामिल थी।

मेरी परदादी और दादी के हाथों का बनाया खाना ही जानी वाकर खाते थे क्योंकि उन्हें इंदौर जायका पसंद था।

किस्मत की बात है।
आगे चलकर मेरी परदादी के पोते यानि मेरे बड़े अब्बा झाबुआ के जेलर बने।

बरसों बाद जानी वाकर हमारे रिश्तेदार मशहूर कार्टूनिस्ट इस्माईल लहरी जी की कार्टून प्रदर्शनी का उद्घाटन करने देवलालीकर आर्ट गैलरी इंदौर तशरीफ लाए।

गुलर शाह वली दरगाह के खानदानी खादिम मेरी मानपुर वाली चाची की खलेरी बहनों के शौहर हैं।

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