लेख: जावेद शाह खजराना(घुमक्कड़)
खजराना से करीब 45 किलोमीटर दूर खंडवा रोड़ पर, चोरल रेलवे क्रॉसिंग से जस्ट पहले मगरिब की जानिब एक पगडंडी जाती है । थोड़ी आगे जंगल में रोसिया सरकार दरगाह शरीफ है।
रोसिया सरकार दरगाह तक तो आम जनता अक्सर चली जाती है । लेकिन उसके आगे कालाकुंड गांव की तरफ बहुत कम लोग रुख करते हैं।
कालाकुंड गांव से लगा है रतबी पिकनिक स्पॉट।
कलकल करती नदियां के मुहाने बसा गांव ऊंची टेकरी से बेहद हसीन नजर आता है। ऊपर पहाड़ वहां से मटककर गुजरती रेलवे लाईन । ये सब देखकर लगता है जैसे किसी पुरानी फिल्म का कोई सीन हो। जहां कुछ देर बाद गांव की गोरियां पानी भरने आएंगी।
चारों जानिब खूबसूरत और दिलकश नजारे है।
इसका नाम “हिमालय की गोद में” होना चाहिए क्योंकि चारों तरफ पहाड़ों से लिपटा ये गांव किसी स्वर्ग से कम नहीं।
मानो यहां दूध की गंगा बहती है। मतलब कालाकुंड गांव में रिवाज है यहां का दूध बाहर जाकर बेच नहीं सकते। इसलिए यहां के ग्वाले दूध को घोंटकर बेहद लजीज पकवान बनाकर स्टेशन पर फरोख्त करते है , जिसे कलाकंद कहते है।
जी हां कालाकुंड का कलाकंद। कभी चखा है आपने?
यकीन करना दोस्तों
बचपन में ट्रेन में बैठकर कालाकुंड सिर्फ इसलिए जाता था कि यहां का कलाकंद खा सकूं।
खाकरे के पत्तों पर रखा कुरमुरा शहद से भी ज्यादा मीठा कलाकंद जुबान पर रखते ही पिघल~सा जाता है।
इस बारिश मौका मिले तो रतबी पिकनिक स्पॉट जरूर जाइयेगा और हां कलाकंद चखना मत भूलिएगा।