गोरखपुर

गाजी मियां ने दिया मानवता का संदेश: नज़रे आलम

गाजी मियां, हज़रत अब्बास व हज़रत सैयदा जैनब का मनाया गया उर्स-ए-पाक

गोरखपुर। मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार व सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार में शनिवार को हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां, हज़रत सैयदना अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु, उम्मुल मोमिनीन हज़रत सैयदा जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी की गई।

प्रधानाचार्य हाफिज नज़रे आलम कादरी ने कहा कि ग़ाजी मियां मानवता का संदेश देने के लिए बहराइच तशरीफ लाये। उस वक्त वहां ऊंच-नीच, जात-पात का बोल बाला था। आपने इसका विरोध किया। वहां के राजाओं ने आपसे बहराइच खाली करने को कहा। गाजी मियां ने कहा कि मैं यहां पर हुकूमत करने नहीं आया हूं। उसके बावजूद राजा नहीं मानें। राजाओं ने मिलकर हमला कर दिया। आपने बहुत बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहादत का जाम पिया। अस्र मगरिब के दरमियान इस्लामी तारीख 14 रजब 424 हिजरी में आपकी रूह मुबारक ने इस जिस्म खाक को छोड़कर अब़्दी ज़िन्दगी हासिल की। आप हमेशा इंसानों को एक नज़र से देखते थे। सभी से भलाई करते। दुनिया से जाने के बाद भी आपका फैज जारी है। आपका मजार शरीफ बहराइच में है। जहां पर ऊंच-नीच, जात-पात, मजहब की दीवार गिर जाती है।

सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार के इमाम हाफिज रहमत अली निज़ामी ने हज़रत सैयद सालार मसूद ग़ाजी मियां अलैहिर्रहमां की ज़िन्दगी व खिदमात पर रौशनी डालते हुए कहा कि ग़ाजी मियां का जन्म 21 रजब 405 हिजरी को अजमेर में हुआ। आप मुसलमानों के चौथे खलीफा हज़रत सैयदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु की बारहवीं पुश्त से हैं। गाजी मियां के वालिद का नाम हज़रत ग़ाजी सैयद साहू सालार था। मां का नाम सितर-ए-मोअल्ला था। चार साल चार माह की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी हुई। नौ साल की उम्र तक फिक्ह व तसव्वुफ की तालीम हासिल की। आप बहुत बड़े आलिम थे।

चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर के इमाम हाफिज महमूद रज़ा कादरी ने कहा कि गाजी मियां बहुत मिलनसार थे। जब तंहाई में होते तो वुजू करते और इबादत-ए-इलाही में मश्गूल हो जाते। ग़ाजी मियां ऐसे सूफियों की संगत में अपना जीवन व्यतीत करते थे, जिनका संसार की लौकिक विधा की अपेक्षा अलौकिक विधा पर अधिक अधिकार था। इसके अतिरिक्त आप युद्ध कला विशेषकर तीरंदाजी में भी पूर्ण अधिकार रखते थे।

उन्होंने सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना अब्बास व पैगंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की पत्नी हज़रत सैयदा जैनब की ज़िन्दगी पर भी रौशनी डाली। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। उर्स में कारी सद्दाम, हाफिज आमिर हुसैन निज़ामी, मो. आज़म, आसिफ रज़ा, रहमत अली अंसारी, अब्दुल कय्यूम, अजमत अली, हाफिज शाहिद, हारून अली हुसैन आदि मौजूद रहे। नार्मल स्थित दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद में भी उर्स-ए-पाक अकीदत के साथ मनाया गया। शीरीनी तकसीम की गई।

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