गोरखपुर। सोमवार को मदरसा जामिया कादरिया तजवीदुल क़ुरआन लिल बनात अलहदादपुर में महिलाओं की दीनी महफ़िल के चौथे दिन आलिमा नूर इरम ने कहा कि ईद-उल-अजहा मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। इस मौके पर मुसलमान नमाज़ पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी देते हैं। दीन-ए-इस्लाम के अनुसार कुर्बानी करना हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब करार दिया है। अल्लाह को पैगंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी की अदा इतनी पसंद आई कि हर मालिके निसाब पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है।
आलिमा तरन्नुम रोजी ने कहा कि ईद-उल-अजहा में हर वह मुसलमान जो आकिल, बालिग, मुकीम, मर्द, औरत जो कुर्बानी के तीनों दिन के अंदर जरुरते अस्लिया को छोड़कर, कर्ज से फारिग होकर तकरीबन 40 हजार रुपया का मालिक हो जाए तो उसके ऊपर कुर्बानी वाजिब है। इसी वजह से हर मुसलमान इस दिन कुर्बानी करवाता है। अगर मालिके निसाब होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार है। ऐसे में जरूरी है कि कुर्बानी करें। तंदुरुस्त जानवर की कुर्बानी अफजल है। महफ़िल में आलिमा नाजमीन फातिमा, महजबीन ख़ान सुल्तानी, गौसिया अंजुम, गजाला सुल्तानी सहित मदरसे की छात्राएं व महिलाओं ने शिरकत की।
वहीं मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती में कुर्बानी पर दर्स के चौथे दिन मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि हदीस में आया है कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया सबसे पहले जो काम आज (ईद-उल-अजहा के दिन) हम करेंगे वह यह है कि नमाज़ पढ़ेगें फिर उसके बाद कुर्बानी करेंगे। जिसने ऐसा किया उसने हमारे तरीके को पा लिया और जिसने नमाज़ से पहले जिब्ह कर लिया वह गोश्त है जो उसने पहले से अपने घर वालों के लिए तैयार किया। कुर्बानी से उसका कुछ ताल्लुक नहीं है।