आज फूलन देवी की 22वी बरसी है।
सोचा फूलन देवी का किरदार निभाने वाली
इंदौर की रीता भादुड़ी और इसी फिल्म की इंदौर में हुई शूटिंग से जुड़ी बातें शेयर करूं…..
यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि साल 1968 में फिल्म ‘तेरी तलाश में’ से अपने फिल्मी कॅरियर की शूरुआत करने वाली रीटा भादुड़ी का बचपन इंदौर की गलियों और यहां के कलाकारों के बीच गुजरा। बहुत~सी जगह उनके जन्म का स्थान इंदौर ही लिखा है।
इंदौर में रीता भादुड़ी का परिवार यशवंत रोड , गांधी भवन के पास चौधरी साहब के मकान में रहता था।
रीता भादुड़ी की वालिदा चंद्रिमा भादुड़ी टीचर थीं और वालिद राजबाड़ा के पास गोपाल मंदिर प्रांगण में लगने वाले माफी विभाग के तहसीलदार।
कोयला बाखल और यशवंत रोड की गलियों में खेला करती थी रीता भादुड़ी। इंदौर में माहौल में पली~बढ़ी रीता भादुड़ी जवान होने पर फिल्मों में मशरूफ हो गई।
यादों की पोटली खंगालते हुए द्वारकापुरी निवासी 84 साल के जीएस माथुर बताते हैं पचास के दशक की बात होगी। मेरी उम्र उस वक्त करीब 17-18 साल रही होगी जब मेरी मुलाकात भादुड़ी परिवार से हुई थी। रीटा उस परिवार की सबसे छोटी बेटी थी।
रीता भादुड़ी की माताजी चंद्रिमा भादुड़ी को गाने और डांस का बहुत शौक था और इसका असर बेटी रीटा पर भी पड़ा। हम तो चंद्रिमाजी को दीदी कहते थे। मुझे याद है वह समय जब चंद्रिमा दीदी के स्कूल में होने वाले सालाना जलसे में दो प्रस्तुतियों के बीच के अंतराल में अक्सर रीटा को मंच पर खड़ा कर दिया जाता था और
वह नन्हीं सी बच्ची बहुत ही खूबसूरत डांस करती थी।
तब भी उसके भाव सबको आकर्षित कर लेते थे।
कई मर्तबा हमने रीटा और उनकी बड़ी बहन रीमा का कथक भी देखा, जिसका निर्देशन उनकी मां ही करती थी।
रीटा जितनी मीठी बंगाली बोलती थी उतनी ही मिठास उनकी हिंदी और इंदौरी मालवी में भी थी। बहुत कुछ तो अब याद नहीं है, लेकिन यह जरूर याद है कि रीटा भादुड़ी या यूं कहें कि पूरा ही भादुड़ी परिवार कला के लिए समर्पित था और एक दिन इंदौर की गलियों को छोड़कर मुंबई की भूल भुलैया में अपनी पहचान बनाने के लिए यहां से चला गया।
लेकिन रीता इंदौर को कभी नहीं भूली।
एक बार इंदौर में शूटिंग करने का मौका मिला।
उन्होंने तुरंत हां कर दी। 30 साल की रीता ने फूलन देवी का किरदार निभाया था।
1984 में अशोक वर्मा ने फूलन देवी के जीवन पर बंगाली में फुलनदेवी फिल्म का डायरेक्शन किया।जिसका हिंदी संस्करण कहानी फूलवती की नाम से बनाया गया। फिल्म जनवरी 1985 में रिलीज हुई।
फिल्म की अधिकांश शूटिंग इंदौर के फूटी कोठी में हुई।
सुरेश ओबेरॉय साथ थे। बाकी की शूटिंग आसपास के बीहड़ों में हुई। पुराने इंदौरियों को शायद याद हो।
एक इंदौरी
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)