गोरखपुर

इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद

  • मस्जिदों में जारी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल

गोरखपुर। माहे मुहर्रम शुरु हो चुका है। माहौल सोगवार है। महफिल व मजलिसों के जरिए हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों की कुर्बानी को याद किया जा रहा है। मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की शान बयान की जा रही है। कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी हो रही है। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में चहल पहल है। हलुआ पराठा बिकना शुरू हो गया। मोहल्लों में बच्चे ऊंट की सवारी कर रहे हैं। मियां बाज़ार स्थित इमामबाड़ा इस्टेट में भी चहल पहल बढ़ गई है।

गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में दस दिवसीय महफिल के पहले दिन मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की कुर्बानी ने दीन-ए-इस्लाम को ज़िंदा कर दिया, इसी लिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर कहते हैं ‘कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है, इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद’। हज़रत इमाम हुसैन इबादत व रियाजत में बडे़ आबिद, जाहिद व तहज्जुद गुजार थे। आप निहायत हसीन व ख़ूबसूरत थे। पूरा-पूरा दिन और सारी-सारी रात नमाजें पढ़ने और तिलावते कुरआन में गुजार दिया करते थे। इमाम हुसैन का जिक्रे खुदावंदी का शौक कर्बला की तपती हुई जमीन पर तीन दिन के भूखे-प्यासे रह कर भी न छूटा। शहादत की हालत में भी दो रकात नमाज़ अदा करके बारगाहे खुदावंदी में अपना आखिरी नज़राना पेश फरमा दिया। मदरसा जामिया कादरिया तजवीदुल क़ुरआन लिल बनात अलहदादपुर में भी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल हुई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर हज़रत सैयदना इमाम हुसैन के नक्शे कदम पर चलने व अमनो शांति की दुआ मांगी गई।

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