ऐतिहासिक

हज़रत उमर के दौर में नहरों का इंतज़ाम और स्वेज नहर

हज़रत उमर के दौर में इकोनॉमी सिस्टम की बुनियाद खेती थी. इसलिए अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर رض ने खेती की तरफ़ ख़ास ध्यान दिया. सब से पहले आपने ज़मीनों की पैमाइश कराई. ज़मीन की केटेगरी बनाई कि किस इलाक़े में ज़मीन ज़्यादा उपजाऊ है और कहां कम. इसी की बिना पर लगान की दर तय की गई।

जिन इलाक़ों में ज़मीन कम उपजाऊ थी वहाँ पानी पहुँचाने के लिए नहरें खुदवाई गईं. इसके लिए बाकायदा एक डिपार्टमेंट क़ायम किया गया. नेहरों के अलावा तालाब और दहाने भी बनाए गए. हालंकि नहर सिर्फ खेती के लिए नहीं थी बल्कि इसका मक़सद उन इलाक़ों में पानी पहुँचाना था जहां पानी की क़िल्लत थी. बसरा में पानी की क़िल्लत थी इसके लिए दजला से एक नौ किलोमीटर लम्बी नहर काट कर शहर में लायी गयी. दजला से एक और नहर काटी गई इस नहर का सारा इंतज़ाम हज़रत माक़िल बिन यसार رض ने किया था इसलिए इसका नाम नहर ए माक़िल रखा गया.

एक सब से बड़ी नहर हज़रत उमर رض के नाम पर नहर ए अमीरुल मोमिनीन जारी की गई. इसके नाम से ही ज़ाहिर है कि जिस तरह अमीरुल मोमिनीन सब से बड़ी शख्सियत हैं तो उनके नाम पर जारी की जाने वाली नहर भी बड़ी होनी चाहिए . इस नहर की ज़रूरत उस वक़्त पेश आयी जब 18 हिजरी में क़हत (सूखा) पड़ गया और अनाज की कमी हो गई. अब अनाज सिर्फ शाम और मिस्र से आ सकता था लेकिन रास्ता बहुत लम्बा था इसलिए हज़रत उमर ने मिस्र के गवर्नर हज़रत अमर इब्न आस رض को नहर जारी करने का हुक्म दिया. आप ने फ़रमाया:

يا عمرو إن الله قد فتح على المسلمين مصر … وقد ألقي في روعي … أن أحفر خليجاً من نيلها (نهر النيل) حتى يسيل في البحر (يعني البحر الأحمر) فهو أسهل لما نريد من حمل الطعام إلى المدينة ومكة

ए अमर, अल्लाह ने मिस्र को मुसलमानों के लिए फ़तह किया है.. और मेरे ज़हन में में ये बात दर्ज़ हो गई है कि.. इस के दरिया-ए-नील (नील से एक ख़लीज खोद दूँ सो वो समंदर (यानी बहिरा अहम यानी रेड सी में जा गिरे ) जो मदीना और मक्का तक खाना ले जाने से ज्यादा आसान है।

हज़रत अमर इब्ने आस رض ने अमीरुल मोमिनीन के हुक्म की तामील करते हुए फ़ुस्तात (ओल्ड काहिरा) से एक नहर निकाली और रेड सी में मिला दी गई ये सत्तर मील लम्बी थी इस तरह मक्का मदीना की बंदरगाह जेद्दा और मिस्र की दूरी बहुत कम हो गयी बल्कि एक हो गए।

उस ज़माने में रूम सागर और लाल सागर अलग अलग थे. हज़रत अमर बिन आस ने हज़रत उमर رض को लिखा कि इन दोनों सागरों को मिला दिया जाए. हज़रत उमर ने इजाज़त न दी उन्हें इसमें सियासी ख़तरा लगा कि यूनान के लोग हाजियों पर हमला कर के लूट लिया करेंगे. इसलिए ये नहर खुद न सकी अगर खुद जाती तो स्वेज नहर भी अमीरुल मोमिनीन के हिस्से में आती।

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